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सूत्रकृतांग सूत्र
ही प्रभाव से विभिन्न प्रकार की योनियों में उत्पन्न होते हैं । ( णाणाविहाणं तस्थावराणं पोग्गलाणं सरीरेसु वा सचित्तसु वा अचित्तसु वा अणुसूयत्ताए विउट्टंति) वे प्राणी नाना प्रकार के तस और स्थावर पुद्गलों के सचित्त और अचित्त शरीर में उनके आश्रित होकर रहते हैं । (ते जीवा तेसि णाणाविहाणं तस्थावराणं पाणाणं सिणेहमाहारेंति) वे जीव अनेकविध त्रस और स्थावर प्राणियों के स्नेह का आहार करते हैं । (ते जीवा पुढवीसरीरं जाव आहारति संतं) वे जीव पृथ्वी आदि के शरीरों का भी आहार करते हैं । (तेसि तसथावरजोणियाणं अणुसूयगाणं सरीरा अवरेऽवि य णाणावणा जावभक्खायं ) उन तस स्थावर योनियों से उत्पन्न, और उन्हीं के आश्रय से रहने वाले प्राणियों के विभिन्न वर्ण वाले दूसरे शरीर भी होते हैं, यह श्री तीर्थकरदेव ने कहा है । ( एवं दुरूवसंभवत्ताए एवं खुरदुगत्ताए ) इसी प्रकार विष्ठा और मूत्र आदि से विकलेन्द्रिय प्राणी पैदा होते हैं, और गाय-भैंस आदि के शरीर में चर्मकट उत्पन्न होते हैं ।
व्याख्या
विकलेन्द्रिय प्राणियों की उत्पत्ति और आहार
पञ्चेन्द्रिय प्राणियों के आहार के सम्बन्ध में बताकर अब इस सूत्र में विकले - न्द्रिय प्राणियों की उत्पत्ति और आहार आदि के सम्बन्ध में निरूपण करते हैं । जो प्राणी त्रस और स्थावर प्राणियों के सचित्त तथा अचित्त शरीर में उत्पन्न होते हैं; और उन्हीं के आश्रय से उनकी स्थिति और वृद्धि होती है, उन ( विकलेन्द्रिय जीवों) का वर्णन इस सूत्र में किया गया है । मनुष्य के शरीर में जू, लीख आदि तथा खाट में खटमल आदि उत्पन्न होते हैं तथा मनुष्य के अचित्त शरीर में तथा विकलेन्द्रिय प्राणियों के शरीर में कृमि आदि उत्पन्न होते हैं । ये प्राणी दूसरे प्राणियों की तरह अन्यत्र जाने-आने में स्वतन्त्र नहीं हैं, किन्तु वे जिस शरीर में पैदा होते हैं, उसी के आश्रय से रहते हैं । सचित्त तेजस्काय (अग्नि) तथा वायुकाय (हवा) से भी विकलेन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति होती है । वर्षा ऋतु में गर्मी के कारण जमीन से कुन्थुआ आदि संस्वेदज प्राणियों को उत्पत्ति होती है । इसी प्रकार जल से भी अनेक विकलेन्द्रिय ( द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय) प्राणियों की उत्पत्ति होती है । वनस्पतिकाय से पनक, भ्रमर आदि विकलेन्द्रिय जीव उत्पन्न होते हैं । ये प्राणी जिस शरीर से उत्पन्न होते हैं, उसी का आहार करके जीते हैं । जैसे सचित्त और अचित्त शरीर से विकलेन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति होती है, वैसे ही पंचेन्द्रिय प्राणियों के मल-मूत्र से भी दूसरे विकलेन्द्रियों की उत्पत्ति होती हैं । वे जीव शरीर से बाहर निकले हुए और नहीं निकले हुए दोनों ही प्रकार के मल-मूत्रों से उत्पन्न होते हैं । इन
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