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डॉ. वेदप्रकाश उपाध्याय, एम० ए०, एल-एल० बी०, डी० फिल०, डिप० इन जर्मन, दर्शनाचार्य, धर्मशास्त्राचार्य, प्राप्त स्वर्णपदक, प्राध्यापक (अनुसन्धान) वी० वी० बी० आई० एस० ऐण्ड आई० एस०, पंजाब यूनिवर्सिटी, साधु आश्रम, होशियारपुर (पंजाब)
___ संस्कृत और प्राकृत भाषा के प्रकाण्ड विद्वान, दार्शनिक, पण्डित-प्रवर श्री हेमचन्द्रजी महाराज के द्वारा अनूदित श्री सूत्रकृतांग सूत्र नवयुग-सुधारक पण्डित श्री पदमचन्दजी महाराज भण्डारीजी' की अमोघ प्रेरणा के परिणामस्वरूप प्रवचनभूषण श्री अमरमुनिजी महाराज के द्वारा सम्पादित एक वैज्ञानिक कृति है, जिसके सहसम्पादक के रूप में मुनि श्री नेमिचन्द्रजी का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। प्रस्तुत विशालकाय ग्रन्थ मूल, छाया, अन्वयार्थ एवं अमरसुखबोधिनी नामक व्याख्या से समन्वित है। प्रस्तुत ग्रन्थ के अनुशीलन से संस्कृत भाषा के विद्वान, प्राकृत भाषा से अनभिज्ञ होते हुए भी अनायास प्राकृत भाषा में नैपुण्य प्राप्त करके जैनदर्शन एवं धर्म में निष्णात हो सकते हैं । यह शास्त्र प्राकृत भाषा में 'सूथगडंग' नाम से अभिहित है, जो धर्म एवं दर्शन के क्षेत्र में अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । अंगप्रविष्ट द्वादश शास्त्रों में क्रम की दृष्टि से 'सूयगडंग' का दूसरा स्थान है । अंगप्रविष्ट श्रुतज्ञान को आगम शास्त्रों में सर्वप्रमुख माना जाता है। प्रस्तुत ग्रन्थ के अध्ययन से सूत्रकृतांग के व्याख्याकार मुनि श्री हेमचन्द्रजी महाराज के वैदुष्य, वाग्वैखर्य और शास्त्रव्याख्यान-कौशल का जितना अधिक परिचय मिलता है, उतना ही अधिक बोध श्री अमरमुनिजी के शास्त्रीय ज्ञान और सम्पादन-कृशलता का होता है। यह पण्डित श्री पदमचन्दजी महाराज भण्डारीजी' की प्रेरणा का ही सुफल है, जो गणधर श्री सुधर्माप्रणीत द्वितीय अग श्री सूत्रकृतांग सूत्र का बृहद अद्वितीय भाष्य जैन धर्म एवं दर्शन के क्षेत्र में समाविष्ट हो गया है। मूल पाठ का भाष्य करते समय विद्वान भाष्यकार ने अनेक शास्त्रों से सन्दर्भ देते हुए शंका-समाधानपूर्वक प्रतिपाद्य विषय को उपस्थापित किया है।
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