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___ आप ओजस्वी वक्ता भी हैं, तटस्थ चिन्तक भी हैं, सुकवि और लेखक भी हैं। पंजाब में स्कूल-कालिज-चिकित्सालय एवं स्थानक आदि के निर्माण में आपश्री का मार्गदर्शन एवं प्रेरणा प्रमुख रही है।
शास्त्र-सेवा के इस पुनीत कार्य में हम सेवाभावी श्री रत्नमुनि जी महाराज का स्मरण किये बिना नहीं रहेंगे । आप आचार्य सम्राट श्री आत्मारामजी महाराज के प्रिय शिष्य रहे हैं । सेवा आपके जीवन का मूल मन्त्र रहा है। सरलता और समता की साधना से आपश्री ने अपना जीवन कृतार्थ किया है ।
सुलेखक श्री नेमिचन्द्रजी महाराज का सहयोग भी इस पुनीत कार्य में सदा स्मरणीय रहेगा।
प्रकाशन में सहयोग देने वाले दानी सज्जनों ने शास्त्र-सेवा के पुण्यकार्य में दिल खोलकर सहयोग दिया है। हम उनको संस्था की तरफ से हार्दिक धन्यवाद देते हैं। साथ ही सुप्रसिद्ध साहित्यसेवी श्रीचन्दजी सुराना ने इस गम्भीर आगम ग्रन्थ का सुन्दर व शुद्ध मुद्रण आदि कार्य सम्पन्नकर हमें उत्साहित किया है, हम उनके सहयोग को भी सदा स्मरण रखेंगे ।
आशा है हमारी संस्था का यह द्वितीय पुष्प पाठकों के लिए उपयोगी व उपकारी सिद्ध होगा।
मन्त्री"हाकमचन्द जैन आत्म ज्ञानपीठ, मानसामन्डी
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