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सूत्रकृतांग सूत्र तथ्य नहीं है, ये वस्तुस्वरूप के यथार्थ बोधक नहीं हैं, (इमं सच्चं, इमं तहियं, इमं आहातहियं) यह जो हमारा मत है, वही सत्य है, वही तथ्य है, वही यथार्थ है। (ते एवं सन्नं कुव्वंति, ते एवं सन्नं संठवेंति, ते एवं सन्नं सोवट्ठवयंति) वे ईश्वरकारणवादी ऐसा विचार रखते हैं और वे अपने शिष्यों को भी इसी मत की शिक्षा देते हैं तथा वे सभा में इसी मत की स्थापना करते हैं। (जहा सउणी पंजरं एवं ते तज्जाइयं दुक्खं णाइउति ) जैसे पक्षी पीजरे को नहीं तोड़ सकता, वैसे ही ईश्वरकारणतारूप मत के स्वीकार करने से उत्पन्न दुःख को वे ईश्वरकारणवादी नहीं तोड़ सकते हैं । (ते एवं णो विप्पडिवेति) वे ईश्वरकारणवादी इन बातों को नहीं मानते । (तं जहाकिरयाइ वा अनिरएइ वा) जैसे कि पूर्वसूत्रोक्त क्रिया से लेकर अनिरय तक जो बातें कही गई हैं वे उन्हें अमान्य हैं (ते विरूवरूवेहि कम्मसमारंभेहि भोयणाए विरूवरूवाई कामभोगाई समारंभंति) वे नाना प्रकार के सावद्य अनुष्ठानों के द्वारा नाना प्रकार के कामभोगों का आरम्भ करते हैं। (ते अणारिया) वे अनार्य हैं (विप्पडिवन्ना) भ्रम में पड़े हैं (एवं सद्दहमाणा जाव इति ते णो हव्वाए णो पाराए) इस प्रकार की श्रद्धा रखने वाले वे ईश्वरकारणवादी न इस लोक के होते हैं, न परलोक के, (अंतरा कामभोगेसु विसण्णा) किन्तु कामभोगों में फंसकर बीच में ही कष्ट पाते हैं। (तच्चे पुरिसजाए ईसरकारणएत्ति आहिए) यह तीसरे ईश्वरकारणवादी पुरुष का स्वरूप कहा गया है ।
व्याख्या ईश्वरकारणवादी तृतीय पुरुष : स्वरूप, विश्लेषण
इस सूत्र में तीसरे पुरुष का वर्णन किया गया है। यह तीसरा पुरुष ईश्वरकारणिक है। यह मानता है कि चेतन और अचेतनस्वरूप इस सारे संसार का कर्ता ईश्वर है। ईश्वर जगत् का आदि कारण है। ईश्वर-कर्तृत्ववाद का सिद्धान्त इस प्रकार है-जो पदार्थ किसी विशेष अवयव रचना से युक्त होता है, वह किसी बुद्धिमान कर्ता के द्वारा बनाया हुआ होता है, जैसे-घट विशेष अवयव रचना से युक्त होता है, इसलिए वह कुम्हार के द्वारा बनाया हुआ होता है, पट भी जुलाहे द्वारा बनाया हुआ होता है, इसी तरह प्राणियों का शरीर तथा यह समस्त जगत् विशिष्ट अवयव रचना से युक्त है। अतः यह भी किसी बुद्धिमान कर्ता के द्वारा बनाया हुआ है। जिस बुद्धिमान कर्ता ने इन पदार्थों को बनाया है, वह हम लोगों के समान अल्पज्ञ या अल्पशक्तिमान नहीं हो सकता, अपितु वह सर्वशक्तिमान् एवं सर्वज्ञ पुरुष है, उसे ही ईश्वर या परमात्मा कहते हैं। उसी ईश्वर की कृपा से जीव को स्वर्ग और उसके कोप से नरक मिलता है। जीव अल्पज्ञ और अल्पशक्तिमान् है। वह अपनी इच्छा से न तो सुख प्राप्त कर सकता है और न ही दुःख को मिटा सकता है अपितु ईश्वर की आज्ञा से ही उसे सुख-दुःख की प्राप्ति होती है। जैसा कि ईश्वरकर्तृत्ववादी कहते हैं
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