________________
६०२
सूत्रकृतांग सूत्र
कितना हास्यापद होगा ? मेरे मुण्डित मस्तक पर या चेहरे पर कहाँ किसी जाति की तख्ती लगी होगी ? जो वस्तु सर्वथा छोड़ दी है, और भयंकर कर्मबन्ध का कारण है, उसे पुनः व्यर्थ की अभिमानवृद्धि के लिए अपनाना कितनी मूर्खता है ?" इस प्रकार गहराई से जातिवाद की निःसारता का याथातथ्य स्वरूप समझकर जो जातिमद बिलकुल नहीं करता, वही सर्वज्ञोक्त मार्गानुगामी सच्चा साधु है |
मूल पाठ
न तस्स जाई व कुलं व ताणं, नन्नत्थ विज्जाचरणं सुचिण्णं । खिम्म से सेवईऽगारिकम्मं, ण से पारए होइ विमोयणाए || ११|| संस्कृत छाया
न तस्य जातिश्च कुलं च त्राणं, नान्यत्र विद्याचरणं सुचीर्णम् । निष्क्रम्य स सेवतेऽगारिकर्म, न स पारगो भवति विमोचनाय ॥११॥
अन्वयार्थ
( सुचिण्णं विज्जाचरणं नन्नत्य) अच्छी तरह आचरित ज्ञान और चारित्र के सिवाय ( न तस्स जाई न कुलं व ताणं) जाति आदि का मद करने वाले साधक की जाति, कुल या अन्य कोई भी पदार्थ रक्षा नहीं कर सकते । (णिक्खम्म से अगारि कम्मं सेवई) जो मनुष्य प्रव्रज्या लेकर फिर गृहस्थ के कर्मों (सावद्यकर्मों) का सेवन करता है, (सेमिणाए पारए ण होइ) वह अपने कर्मों को क्षय करके मुक्त होने में समर्थ नहीं होता ।
भावार्थ
जाति और कुल मनुष्य को दुर्गति से बचा नहीं सकते । वास्तव में भली-भाँति आचरण किए हुए ज्ञान और चारित्र के सिवाय अन्य कोई भी वस्तु मनुष्य की संसार से रक्षा करने समर्थ नहीं है । किन्तु जो मनुष्य दीक्षा लेकर फिर गृहस्थी के सावद्य, आरम्भजन्य कामों में पड़ जाता है, वह अपने कर्मों को नष्ट करके बन्धनमुक्त होने में समर्थ नहीं होता
1
व्याख्या
ज्ञान और चारित्र के सिवाय कोई भी वस्तु संसारपरिभ्रमण से बचा नहीं सकती मनुष्य विविध प्रकार की योनियों और गतियों में भटकता हुआ नाना प्रकार के असह्य दुःखों को भोगता है, किन्तु वह सोचता है कि उच्च जाति या उच्च कुल धनादि दुर्गति से या इन दुःखों से मेरी रक्षा कर देंगे, लेकिन उसकी तमाम आशाओं पर पानी फिर जाता है, जब मौत उसके सामने आकर खड़ी हो जाती है । उस समय उस व्यक्ति के द्वारा आचरित ज्ञान और चारित्र के सिवाय कोई भी सजीव या निर्जीव पदार्थ उसे उक्त दुःखों या दुर्गति से बचा नहीं सकता । इसलिए शास्त्र -
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org