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सूत्रकृतांग सूत्र
महावीर से सुनकर जैसा समझा है, उस प्रकार से आपको कहूँगा । (जंतवो तं मे सुणेह) हे प्राणियो ! उस मार्ग को आप मुझ से सुन लें ।
भावार्थ
श्री सुधर्मास्वामी अपने शिष्यों से कहते हैं - तीर्थंकरप्ररूपित इस मार्ग को ग्रहण करके भूतकाल में बहुत-से जीव संसारसमुद्र पार कर चुके हैं, वर्तमान में भी बहुत-से पार करते हैं और भविष्य में भी बहुत-से जीव संसारसागर को पार करेंगे। उस मार्ग को मैंने तीर्थंकर भगवान महावीर से सुनकर उसे जैसा समझा है, उस रूप में मैं आप जिज्ञासुओं को कहूँगा । हे जिज्ञासु जीवो ! मैं उस मार्ग का वर्णन करता हूँ, उसे आप ध्यानपूर्वक सुनें ।
व्याख्या
तीनों काल में संसारसागर से पार कराने वाला मार्ग
इस गाथा में फिर भगवान महावीरकथित मोक्षमार्ग की विशेषता बताते हैं । वह मोक्षमार्ग तीनों कालों में संसार समुद्र से पार करने वाला है । महापुरुषों द्वारा आचरित, अवश्य मोक्षदायक जिस मार्ग को स्वीकार करके पूर्व अनादिकाल में अनन्तजीवों ने समस्त कर्ममल को दूर करके संसारसागर को पार किया है । वर्तमान में भी महाविदेहक्षेत्र आदि से सदा सिद्धि प्राप्त होती है, इसलिए इस समय भी संख्यात व्यक्ति संसारसागर को पार करते हैं, तथा भविष्य में भी अनन्तकाल में अनन्तजीव इस मार्ग के द्वारा संसारसमुद्र को पार करेंगे । इसलिए यह त्रिकाल में संसारसागर पार कराने वाला मोक्षप्राप्ति का कारण तथा प्रशस्त भावमार्ग है । श्री सुधर्मास्वामी जम्बूस्वामी का आश्रय लेकर समस्त जीवों को सम्बोधित करके कहते हैं - हे जीवो ! तुम सावधान होकर मेरे द्वारा कहे जाने वाले मार्ग का वर्णन सुनो।
मूल पाठ
॥७॥
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पुढवी जीवा पुढो सत्ता, आऊजीवा तहागणी । वाउजीवा पुढो सत्ता, तणरुक्खा सबीयगा अहावरा तसा पाणा, एवं छक्काय आहिया एतावए जीवकाए, णावरे कोइ विज्जई सव्वाहि अणुजुती, मइमं पडिलेहिया सव्वे अक्कं तदुक्खा य, अओ सव्वे न हिंसया ॥६॥ एयं खुणाणिणो सारं, जं न हिसति कंचण अहिंसा समयं चेव, एयावंतं विजाणिया
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