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धर्म : नवम अध्ययन
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बहुत ही पापकर्म करके धन कमाता है, परन्तु अकस्मात् जब वह चल बसता है तो उसके मरने के बाद उसकी मरणोत्तर क्रिया (दाह-संस्कार आदि) लोक दिखावे के लिए करके फौरन उसके ज्ञातिजन उन धन को अपने कब्जे में कर लेते हैं। यहाँ तक कि कई बार तो उसकी पत्नी या नाबालिग बच्चे भी रोते-बिलखते रह जाते हैं,
और उसका वह धन जिसके हाथ में पड़ जाता है, वही दबा बैठता है । न तो उसके पीछे उस धन से कोई सुकृत्य किया जाता है, और न ही वह किसी धर्मकार्य में लगाया जाता है। उस धन से उसके ज्ञातिबन्धु मौज उड़ाते हैं। आखिर धन के लिए किये हुए इतने पापकृत्यों के फलस्वरूप उसे अकेले को ही दुःख भोगना पड़ता है। दूसरा कोई भी उसमें हिस्सेदार नहीं बनता। कितनी विडम्बना होती है, उस पापकर्मकर्ता की ! इस सम्बन्ध में एक गुरु किसी राजा को उपदेश देते हुए कहता है- ततस्तेनाजितैव्यैर्दारश्च परिरक्षितैः
क्रीड़न्त्यन्ये नराः राजन् ! हृष्टास्तुष्टा ह्यलंकृताः॥ अर्थात् - हे राजन् ! जिसने इतने पापकर्म करके द्रव्य उपाजित किया है, और इतनी स्त्रियों के साथ शादी करके उन्हें रखा है, उसके मरने के पश्चात् दूसरे लोग उनके मालिक बनकर खुश होकर, आभूषण पहनकर उनसे मौज उड़ाते हैं। परन्तु पापकर्म से द्रव्य उपार्जन करने वाला मृत पापी अपने कृतपापों से संसार में पीड़ित किया जाता है।
जन्म देने वाले माता-पिता, सगे भाई-बहन, स्त्री-पुत्र, आदि या अन्य स्वजन कोई भी तुम्हारे पापकर्मों से पीड़ित होते हुए तुम्हारी रक्षा करने में समर्थ नहीं है। यानी जब वे इस लोक में विभिन्न दुःखों से तुम्हारी रक्षा नहीं करते, तब परलोक में उनके द्वारा रक्षा करने की आशा कैसे की जा सकती है ?
कालसौकरिक (कसाई) के पुत्र सुलस को अभयकुमार के सत्संग से जीवहिंसा से विरक्ति हो चुकी थी। उसके परिवारीजनों ने उसे पुरखों की तरह जीववध करने के लिए बहुत कहा-सुनी की, परन्तु उस महापराक्रमी सुलस ने उनकी एक न मानी। जब पारिवारिक लोग उस पर दवाब डालने लगे तो उसने कुल्हाड़ी लेकर अपने हाथ पर मारी और उनसे कहा कि आप मेरी इस पीड़ा को बाँट लीजिए। जब सबने ऐसा करने से इन्कार कर दिया तो सुलस ने कहा--जब मेरी इस पीड़ा को आप ले नहीं सकते, तो परलोक में पापकर्म का फल भोगते समय आप मेरी क्या सहायता करेंगे? अतः मैं यह पाप नहीं करूंगा। यह कहकर उस प्रबुद्ध सुलस ने जीववध नहीं किया। इसी प्रकार सभी आरम्भजनित हिंसा करने वाले पापकर्मी यह समझ लें कि उनके दुष्कृत्यों का फल उन्हें अकेले ही भोगना पड़ेगा, कोई भी उसमें हाथ बँटाने या उनकी एवज में दुःखद फल भोगने को नहीं आयेगा।
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