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स्त्री स्वभाव के विषय में नीतिकार कहते हैं
एता हसन्ति च रुदन्ति च कार्यहेतो विश्वासयन्ति च नरं न च विश्वसन्ति । तस्मान्नरेण कुलशीलसमन्वितेन, नार्यः श्मशानघटिका इव वर्जनीयाः ॥ १ ॥ समुद्रवीचीव चलस्वभावाः सन्ध्याभ्ररेखेव मुहूर्तरागाः । स्त्रियः कृतार्थाः पुरुषं निरर्थकं, निष्पीडितालक्तकवत्त्यजन्ति ॥२॥ हृद्यन्यद्वाच्यन्यत्कर्मण्यन्यत् पुरोऽथ पृष्ठेऽन्यत् ।
अन्यत्तव मम चान्यत् स्त्रीणां सर्वं किमप्यन्यत् || ३ ||
सूत्रकृतांग सूत्र
स्त्रियाँ किसी कार्यवश हँसती हैं, कभी रोती हैं, कभी पुरुष को विश्वास देती हैं, परन्तु स्वयं उस पर विश्वास नहीं करतीं । अतः कुल एवं शील से युक्त पुरुष मरघट की घटिकाओं के समान स्त्रियों को त्याज्य समझे । समुद्र की तरंगें जिस प्रकार चंचल होती हैं, उसी तरह स्त्रियों का स्वभाव भी चंचल होता है । जैसे सन्ध्याकाल के बादलों में थोड़ी देर तक राग (लालिमा ) टिकता है, वैसे ही स्त्रियों राग भी थोड़ी देर तक रहता है। स्त्रियाँ जब अपना प्रयोजन पुरुष से सिद्ध कर लेती हैं, तब जैसे लोग महावर का रंग निकाल कर उसकी रूई को फैंक देते हैं, वैसे ही वे पुरुष को मन से फेंक देती हैं । स्त्रियों के हृदय में और बात होती है, वाणी में और बात तथा करती कुछ और ही हैं । सामने अन्य तुम्हारे लिए अन्य होता है, मेरे लिए अन्य होता है कुछ अन्य ही होता है ।
बात होती है, पीछे अन्य |
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वस्तुतः स्त्रियों का सब
स्त्री-स्वभाव के सम्बन्ध में वृत्तिकार ने एक कथानक प्रस्तुत किया है, वह इस प्रकार है---
एक युवक वैशिक कामशास्त्र ( स्त्री स्वभाव को बताने वाले शास्त्र ) के अध्ययन के लिए घर से पाटलिपुत्र रवाना हुआ । रास्ते में वह एक गाँव में एक स्त्री के यहाँ टिका । उसने युवक का रूप-रंग देखकर पूछा - " तुम्हारे हाथ-पैर अत्यन्त सुकुमार हैं, तुम्हारा चेहरा भी सुन्दर है, तुम हृष्टपुष्ट युवक हो, फिर अपना गाँव और घर छोड़कर कहाँ जा रहे हो ?" युवक ने अपने जाने का प्रयोजन यथार्थरूप से उस स्त्री को कह सुनाया । यह सुनकर स्त्री ने कहा - "अच्छा, खुशी से जाओ, पर वैशिक कामशास्त्र पढ़कर लौटते समय इस गाँव से होकर ही जाना ।" युवक ने उक्त स्त्री की बात मानकर उसे वचन दिया । अतः अपने वचन के अनुसार युवक वैशिक कामशास्त्र पढ़कर लौटते समय उसी मार्ग से होकर उस गाँव में पहुँचा । उस स्त्री के यहाँ जब वह पहुँचा, तो उसने स्नान - भोजन आदि के द्वारा युवक की बड़ी आवभगत की। साथ ही उस स्त्री ने अपने हावभावों, कटाक्षों, अंगविन्यास एवं बोलचाल से उस युवक का मन इतना हर लिया कि वह उस स्त्री
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