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सूत्रकृताग सूत्र
चाहिए। जैसे एक साधक द्रव्य से सोता है, भाव से जागता है, यह प्रथम भंग है, दूसरा साधक द्रव्य से जागता है, भाव से सोता है, तीसरा साधक द्रव्य और भाव दोनों से सोता है, और चौथा साधक द्रव्य और भाव दोनों से जागता है। इसमें चतुर्थ भंगवाला साधक सर्वोत्तम है जो शरीर से भी जागता है, और ज्ञान-दर्शन-चारित्र से भी । दूसरे नम्बर में पहले मंगवाला साधक ठीक है, जो शरीर से सोता है, किन्तु ज्ञानादित्रय से जागता है। दूसरा और तीसरा साधक ठीक नहीं है।
अगली गाथा में फिर भगवान् ऋषभदेव अपने पुत्रों को पुनः उपदेश देते हुए जीवन की अस्थिरता का प्रतिपादन करते हैं
मूल पाठ डहरा बुड्ढा य पासह गब्भत्था वि चयंति माणवा । सेणे जह बढ्यं हरे, एवं आउक्खयंमि तुट्टई ॥२॥
संस्कृत छाया दहरा वद्धाश्च पश्यत गर्भस्था अपि त्यजन्ति मानवाः । श्येनो यथा वर्तिकां, हरेदेवमायुःक्षये त्रुट्यति ।।२।।
अन्वयार्थ (डहरा) छोटे बच्चे (बुडढा) बूढ़े (य) और (गन्भत्था वि) गर्भस्थ शिशु भी (माणया) मानव (चयंति) अपने जीवन को छोड़ देते हैं । (पासह) यह देखो, (जह) जैसे (सेणे) श्येन --बाज (वट्टयं) बटेर पक्षी को (हरे) हर लेता (मार डालता) है। (एवं) इसी तरह (आउक्खयंमि) आयुक्षय होने पर (तुट्टई) जीवों का जीवन भी नष्ट हो जाता है।
भावार्थ भगवान् ऋषभदेव स्वामी अपने पुत्रों से कहते हैं---पुत्रो ! शिशु, वृद्ध एवं गर्भस्थ मनुष्य भी अपने जीवन को छोड़ देते हैं; यह देखो ! जैसे बाज (श्येन पक्षी) वर्तक (बटेर) पर झपटकर उसे मार डालता है, वैसे ही मत्यू आयुक्षय होते ही प्राणियों के प्राणों को खत्म कर देता है।
व्याख्या मुत्यु किसी को नहीं छोड़ती
समस्त संसारी जीवों की (देवता, नारक एवं तीर्थंकर आदि चरम-शरीरी जीवों के सिवाय) आयुष्य सोपक्रम होने के कारण कब टूट जाएगी और जीवन का
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