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भगवती भाष्य
वन्दना
वाणी वन्दना
सत्य की अभिव्यक्ति में अक्षर सहज अक्षर बना । वन्दना उस आप्त वाणी की करें पुलकितमना । भारती कैवल्य-पथ से अवतरित अधिगम्य है । सुचिर-संचित तम-विदारक रम्य और प्रणम्य है ।।
वीर वन्दना
पुरुष के पुरुषार्थ का अधिकृत प्रवक्ता जो रहा । चेतना - निष्णात हो जो कुछ हुआ सबको सहा । समन्वय का सूत्र सम्यग् दृष्टि का पहला चरण । वीर प्रभु के चरण-चिह्नों का करें हम अनुसरण ।।
भिक्षु-वन्दना
अगम आगम के पदों का काव्य था जिसने लिखा सहज प्रज्ञा से अपथ का पंथ था जिसको दिखा । भिक्षु का वर मार्गदर्शन भाग्य से उपलब्ध है । सूत्र - सम्पादन नियति का वह बना प्रारब्ध है । ।
जय कालु-वन्दना
सुचिर पोषित आप्त-वाङ्मय- धेनु का दोहन किया मुनिपजय ने भिक्षुगण में प्रवर सूर्योदय किया । उदय की इस उर्वरा का बीज हर आलेख है । पूज्य कालू के सुचिन्तन का नया अभिलेख है ।
वाचना- प्रमुख आचार्य तुलसी- वन्दना नित नया उन्मेष जिस मस्तिष्क का संधान है । वाचना के प्रमुख तुलसी का सकल अनुदान है । भाष्य - युग की श्रृंखला में एक नव्य प्रयोग है । राष्ट्रभाषा में विनिर्मित "भगवती" अनुयोग है ।।
विनयावनत
आचार्य महाप्रज्ञ
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