________________
परिशिष्ट-४ : पारिभाषिक शब्दानुक्रम ४२४
भगवई २,११,१३५,१३२-१३५ (भा.); १६/१२६-१२८ वृक्ष १४/१०१-१०३,१०१-१०६ (भा.) लोक १२/५१-५२,१३०-१३२,१३०-१३२ (भा.); १३/आमुख, | वेद १३/३,२७; १६/४५
४७-५०,५२-५५,५५-६० (भा.), ८८-९१,८८-९१ (भा.); वेदना १४/४११६/२९,३१ १६/११०-११४,११६
वैक्रिय शरीर १२/९७,१५४-१५८ (भा.); १६/४,२२ लोकाकाश १३/५५-६० (भा.),७२-७३ (भा.), ७४-७८ (भा.) वैक्रिय-समुद्घात १३/१५० लोकान्त १६/११८
वैनयिकी १२/१०९ लोभ १२/२२,४१,४२, १३/२७ (भा.); १४/१०९,१११ वैयावृत्त्य १२/५८,५५-५८ (भा.) लोहित १४/८१
वैशालिक श्रावक १२/३० (भा.)
व्याकरण १४/१४२-१४४ वंदन-नमस्कार १२/३,९,१२,१५,१८,२०,२२,२६,२९,३९;
१३/१०४,१०९,११७,११८, १४/३०,१३२; १५/१०, | शब्द १३/१२४ (भा.) १३,२८, ३२,३५,३९,४२,४८,७८,१०९,११९,१३८,१८८; शय्यातर १२/३०,३० (भा.) १६/३४,३५, ५४-५६,५८,७०,७१
शरीर १३/आमुख, ५५-६० (भा.), १२८ (भा.); १५/१२७, वज्रऋषभनाराच संहनन १५/९
१४४,१५२, १६/६-७ (भा.) वनस्पतिकायिक १२/१३४,१३५,१३९-१४२,२०८; १३/८४. | शरीर के प्रकार १६/१७ ८५; १४/६३, १५/७३,७२-७३ (भा.), १८६
शर्करा प्रभा १२/१३६,१७१,२१३, १३/७-९,१६,४५,४५ वनस्पतिकाल १२/१९२,१९६; १४/१०१-१०६ (भा.) ___ (भा.); १४/९०,९१,१४९, १५/१८६, १६/११५ वर्ण १२/१०२-१०७,१०२-१०७ (भा.), १०८-११९, १४/४४, | शल्य चिकित्सा १६/आमुख, ४८-४९ (भा.) ४४-४७ (भा.), ५१ (भा.)
शस्त्र १४/३८,३९,२९-३९ (भा.); १६/आमुख वर्षा १४/२१-२४,२१-२४ (भा.); १६/११७
शाक्य १५/आमुख वर्षावास १५/१४१ (भा.)
शालयष्टिक वृक्ष १४/आमुख, १०३,१०१-१०६ (भा.) वायु १६/१-४ (भा.), ५,५ (भा.)
शालवृक्ष १४/१०१,१०२,१०१-१०६ (भा.) वायुकाय १५/१८६; १६/आमुख, १,५,३५-४० (भा.) शुक्ल १४/८१,१३६ (भा.) वायुकायिक १२/११५; १३/८४-८५; १६/२-४
शुक्ल पक्ष १२/१२४ वासुदेव १६/८८
शुक्ल पाक्षिक १३/३ (भा.) विक्रिया १२/१८३,१८४,१८३-१८४ (भा.); १३/आमुख, १५०, शुक्ल लेश्या १४/१३६ (भा.); १६/९१
१४९-१६६ (भा.); १४/६८-६९ (भा.), १३०-१३१ (भा.); शुक्लाभिजात १४/१३६,१३६ (भा.) १६/८-१६ (भा.)
शुभ भाव १२/१९१ (भा.) विग्रह गति १४/३,३ (भा.), १०,९-१३ (भा.), १४ (भा.), शोक १६/२८-३१,२८-३१ (भा.) ५५,५४-५५ (भा.)
श्रमण १५/आमुख, १४४,१५०,१५१,१६३,१७३,१७४,१८७, विग्रह गति समापन्नक १४/५५,५५ (भा.), ५७,६०
१८८; १६/५१,५२,९१ विचिकित्सा १४/७७
श्रमण घातक १५/१४१,१६६,१८७ विनय १४/२९-३९ (भा.)
श्रमण परंपरा १५/आमुख विनय विधि १४/आमुख
श्रमण प्रत्यनीक १५/१४१ विपुल अवधिज्ञान १६/३३
श्रमण मारक १५/१४१ विपुल तेजोलेश्या १५/९,६९,७०,७६,१७७
श्रमणी १५/१६३, १६/९१ विभंग ज्ञान १३/४ (भा.), ५ (भा.)
श्रमणोपासक १२/आमुख, १,२-१९,२६,२७; १३/१०२,१२०, विभक्ति भाव १२/१२०
१२१; १४/११२,१०७-११२ (भा.) विराधना १४/१,२,२ (भा.); १५/१८६
श्रमणोपासिका १२/१,६,९,११,३०,३३,३७-४१,४१-४८ (भा.), वीचि द्रव्य १४/७२,७३,७२-७३ (भा.) वीर्य १२/१११; १४/६१,६२
श्रवण १२/३३ वीर्य लब्धि १४/१११
श्रामण्य १५/१८६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org