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________________ (II) इसमें प्राचीन इतिहास पर प्रकाश डालने वाले दुर्लभ सूत्र विद्यमान हैं। इस पर अनेक विद्वानों ने काम किया है। किन्तु जितने श्रम-बिन्दु झलकने चाहिए, उतने नहीं झलक रहे हैं, यह हमारा विनम्र अभिमत है। गुरुदेव तुलसी की भावना थी कि भगवती पर गहन अध्यवसाय के साथ कार्य होना चाहिए। हमने उस भावना को शिरोधार्य किया है और उसके अनुरूप फलश्रुति भी हुई है। इसका मूल्यांकन गहन अध्ययन करने वाले ही कर पाएंगे। हमारा यह निश्चित मत है कि सभी परम्पराओं के ग्रंथों के व्यापक अध्ययन और व्यापक दृष्टिकोण के बिना प्रस्तुत आगम के आशय को पकड़ना सरल नहीं है। सहयोगानुभूति जैन परम्परा में वाचना का इतिहास बहुत प्राचीन है। आज से १५०० वर्ष पूर्व तक आगम की चार वाचनाएं हो चुकी हैं। देवगिणी के बाद कोई सुनियोजित आगम-वाचना नहीं हुई। उसके वाचना-काल में जो आगम लिखे गए थे, वे इस लम्बी अवधि में बहुत ही अव्यवस्थित हो गए। उनकी पुनर्व्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी। गणाधिपति पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी ने सुनियोजित सामूहिक वाचना के लिए प्रयत्न भी किया था, परन्तु वह सफल नहीं हो सका। अन्ततः हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारी वाचना अनुसन्धानपूर्ण, तटस्थ दृष्टि-समन्वित तथा सपरिश्रम होगी, तो वह अपने-आप सामूहिक हो जाएगी। इसी निर्णय के आधार पर हमारा यह आगम-वाचना का कार्य प्रारंभ हुआ। हमारी इस वाचना के प्रमुख आचार्यश्री तुलसी रहे हैं। वाचना का अर्थ अध्यापन है। हमारी इस प्रवृत्ति में अध्यापन-कर्म के अनेक अंग हैं-पाठ का अनुसंधान, भाषान्तरण, समीक्षात्मक अध्ययन आदि आदि। इन सभी प्रवृत्तियों में गुरुदेव का हमें सक्रिय योग, मार्ग-दर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। यही हमारा इस गुरुतर कार्य में प्रवृत्त होने का शक्ति-बीज है। प्रस्तुत ग्रंथ भगवती का सानुवाद और सभाष्य संस्करण है। प्रथम खण्ड में भगवती के प्रथम दो शतक व्याख्यात हैं। दूसरे खण्ड में तृतीय शतक से सप्तम शतक तक तथा तीसरे खण्ड में आठवें शतक से ग्यारहवां शतक तक व्याख्यात हैं। प्रस्तुत खंड में बारहवें से सोलहवें शतक तक व्याख्यात हैं। मूलपाठ, संस्कृत छाया, हिन्दी अनुवाद, भाष्य और उनके संदर्भ-स्थल तथा परिशिष्ट-ये सब प्रस्तुत संस्करण के परिकर हैं। प्रस्तत ग्रंथ में संस्कत छाया का कार्य युवाचार्य महाश्रमण ने किया है। इस कार्य में मुनि विमलकुमारजी उनके सहयोगी रहे हैं। भाष्य के श्रुत लेखन, संपादन एवं अनुवाद में मुनि धनंजय कुमार मेरे सहयोगी रहे हैं। मुनि महेन्द्रकुमारजी प्रस्तुत ग्रंथ के पन्द्रहवें शतक के भाष्य एवं अनुवाद में सहभागी रहे हैं। संपादन एवं भाष्य के कार्य में मुनि दिनेशकुमार का भी सहयोग रहा है। इसकी वीक्षा समीक्षा, प्रूफरीडिंग आदि में मुनि हीरालालजी ने बहुत श्रम किया है। मुनि योगेशकुमार ने परिशिष्ट निर्माण, प्रूफरीडिंग आदि में तन्मयता से कार्य किया है। मुनि आलोक कुमार का भी इस कार्य में यथेप्सित योग रहा है। संस्कृत छाया के पुनरवलोकन में साध्वी श्रुतयशा एवं साध्वी मुदितयशा ने अपने अध्यवसाय का नियोजन किया है। पाण्डुलिपि लेखन में अनेक समणियों ने निष्ठापूर्वक श्रम किया है। प्रस्तुत ग्रंथ के सम्पादन में अनेक साधु-साध्वियों का योग है। गुरुदेव के वरद हस्त की छाया में बैठकर कार्य करने वाले हम सब संभागी हैं। फिर भी मैं उन सब साधु-साध्वियों के प्रति सद्भावना व्यक्त करता हूं, जिनका इस कार्य में स्पर्श हुआ है। -आचार्य महाप्रज्ञ २ अक्टूबर २००७ उदयपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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