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________________ २१० उत्तरज्झयणाणि २३ रूवस्स चक्खु गहणं त्रयंति चक्खुस्स रूवं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समगुण्णमाहु दोसस्स हे अमणुण्णमाहु ॥ २४. रूवेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं' अकालियं पावइ से विणास * । रागाउरे से जह वा पयंगे आलोयलोले समुवेड़ मच्चुं ॥ २५. जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तंसि क्खणे से उ 'उवेइ दुक्खं" । दुर्द्दनदोसेण सएण जंतू न किंचि ख्वं अवरज्झई से | २६. एगंतरत्ते रुइरंसि रूवे अतालिसे से कुणई पओसं । दुवखस्स संपीलमुवेइ वाले न लिप्पई तेण मृणी विरागो ।। २७. रूवाणुगासागए य जीवे चराचरे हसणे । चित्तहि ते परितावेइ बाले पीलेइ अट्टगुरू किलिठे ॥ २८. रूवाणुवारण परिग्गहेण उप्पायणे aणसन्निओगे" । ae विओगे य कहि सुहं से ? संभोगकाले य अतित्तिलाभे" ॥ २६. रूवे अतिते य परिग्गद्दे य सत्तोवसत्तो न उवेइ अतुट्ठदोसे दुही परस्स लोभाविले आययई ३०. तहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो रूवे अतित्तस्स परिग्गहे य | मायामुस वड्ढइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥ ३१. मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पयोगकाले यदुही दुरंते । पट्टचित्तोय" चिणाइ कम्मं जं से पुणो ३४. रूवे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण न लिप्पए भवमज्भे वि संतो ३५. सोयस्स सद्द गहणं वयंति तं दोस एवं अदत्ताणि समाययंतो रूवे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो | ३२. रूवाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ? | तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ॥ ३३. एमेव रूवम्मि गओ पओस उवेइ दुक्खोहपरंपराओ | होइ दुहं विवागे | दुक्खोहपरंपरेण । जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ तं रागहेउं तु मणुण्णमाह । अणुष्णमाहु समो य जो तेसु स वीयरागी ॥ गहणं वयंति सोयस्स सह गहणं वयंति । समणुष्णमाहु दोसस्स हेउ अमणुण्णमाहु || ३६. सद्दस्स सोयं रागस्स हेउ १. तमणुष्णमाहु ( बृपा) 1 २. तमणुष्णमाहु ( बृपा) । ३. निच्च ( अ ) । ४. किलेस (बृपा) । ५. निच्वं ( अ, बृ) । ६. समुर्वेति सव्वं (बृपा ) 1 ७. रुसो (म) । Jain Education International तुट्ठि | अदत्तं ॥ 5. वाया गए (सुपा, बृपा) ६. हिंसइ + अगरूचे = हिसइणेगरूवे 1 १०. वाय ( अ ) ; (सुवा, वृपा ) ! ११. तन्निओगे ( उ ) 1 For Private & Personal Use Only बाए ण (सु); रागेण १२. अतित्त' (वृ); अतित्ति ( बृपा ) | १३. उ ( अ ) । www.jainelibrary.org
SR No.003582
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages161
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size3 MB
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