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विषय-वस्तु
इसका मुख्य प्रतिपाद्य जम्बुद्वीप है । पारिपार्श्विक विषयों की सूची बहुत लंबी है । भगवान् ऋषभ, कुलकर, भरत चक्रवर्ती, कालचक्र, सौरमण्डल आदि अनेक विषय इसमें प्रतिपादित हैं। इनमें भरत चक्रवर्ती का वर्णन अस्वस्त महत्त्वपूर्ण है। चक्रवर्ती के चौदह रत्नों और नो निधियों का वर्णन बहुत ही सजीव है।
कालचक्र के वर्णन में वर्तमान अवसर्पिणी के छठे अर का जो वर्णन है वह बहुत रोमाञ्चक है। प्रलय की जितनी भविष्य वाणियां उपलब्ध हैं, उनमें यह सर्वाधिक ध्यानाकर्षण करने वाली है । इसे पढ़ते-पढ़ते अणुयुद्ध की विभीषिका सामने आ जाती है।
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भगवान् ऋषभ और भगवान् महावीर में बहुत एकरूपता रही है। भगवान् ऋषभ को आदिकाश्यप और भगवान् महावीर को अन्त्यकाश्यप कहा जाता है । भगवान् ऋषभ और भगवान् महावीर दोनों ने पंच महाव्रत धर्म का प्रतिपादन किया था भगवान् महावीर की भांति भगवान् ऋषभ भी एक वर्ष से कुछ अधिक समय तब वस्त्र रहे. फिर अचेल हो गए ।
भरत चक्रवर्ती काच के महल में बैठे थे । वे काच में अपना प्रतिबिंब देख रहे थे। देखते-देखते उन्हें कैवल्य प्राप्त हो गया। उत्तरवर्ती ग्रन्थों में इस कथा का विकास हुआ है। अंगुली की अंगूठी गिर जाने पर सौन्दर्य की कमी का अनुभव हुआ और उस चिंतन की गहराई में गए, अन्ततः केवली हो गए।"
यौगलिक व्यवस्था की समाप्ति, समाज और राज्य व्यवस्था के प्रारंभ का सुन्दर चित्र प्रस्तुत आगम में उपलब्ध है। भगवान् ऋषभ के सर्वतोमुखी व्यक्तित्व को समझने के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है। इसका "श्रीमद्भागवत" में वर्णित ऋषभ के साथ तुलनात्मक अध्ययन करना बहुत महत्वपूर्ण
है ।
प्रस्तुत आगम सात अध्यायों में विभक्त है। इन अध्यायों को "बक्खारो" वा "वक्षस्कार" कहा गया है । उनके विषय इस प्रकार हैं
१. जम्बूद्वीप
२. कालचक्र और ऋषभ चरित ३. भरत चरित
१. जंबुद्दीवपण्णत्ती २११३०-१३७
२. धनञ्जय नाममाला, ११४, पृ० ५७
वर्षीयान् वृषभो ज्यायान् पुनराधः प्रजापतिः । ऐश्वाकुः काश्यपो ब्रह्मा गौतमो नाभिजनः ॥
धनञ्जय नाम माला, ११५, ०५८ सन्मतिर्महतीवरी महावीरोऽन्त्यकाश्यपः । नाथान्वयो वर्धमानो यत्तीर्थमिह साम्प्रतम् ॥
३. जंबुद्दीवपण्णत्ती, २६६
४. वही, ३१२२२२२
५. आवश्यक चूर्णि पृ० २२७
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