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________________ क्खत्त-पुंगवण क्त (नक्षत्र) २२० से २२,४६,५१; १५।५५।३ ज ११२४; २१६५, ७१,८८,१३८, ३।२०६, २२५७।१,५५, ५८,६५,६६,१००, १०३,१०४,१११,११२।१,२, ११३, १२६, १२८,१२६ १,१३० से १३३,१३४।२,३,४, १३५।४, १३८ से १४५, १४७, १४८, १५०, १५१,१५२,१५६ से १६७,१७०,१७५, १७७१३, १७८१२, १८०,१८१,१६७ चं ५१४ सू १०1१ से ५, ८ से २५,२७ से ३१,३३ से ४२,४४,४६ से ५६, ६१ से ७५,७७ से ८३, १२ से १०७,१०६ से १२०, १२२,१२३, १२८, १२६ १,२,१३० से १३५,१५२ से १६६, १७१ से १७३; ११।२ से ६,१२।१६ से २८, ३०; १३।११,१४; १५ । १, २, ४, ६ से ६,११, १२,१४ से १६,१६२२,२५,२८,३४,३७; १८१४, ७, १८, १६, ३७ ; १६।१।१, ५१२, ८१२, १११३,१५।३,१६,१६।२११४, ७, २२३, २२,३१, १६।२३,२६; २०१७ उ५/४१, क्खत्तमंडल ( नक्षत्र मण्डल ) ज ७२८५ से ६४,६७, ११३ सू १०।१२६,१३० क्खत्तमास ( नक्षत्रमास ) सू १२२, १२ क्खत्तविजय (नक्षत्रविजय ) सू १२६१४; १०।१३२, १७३ यत्तविमाण (नक्षत्र विमान ) प ४।१६५ से २०० ज ७ १६३, १४ १८१८,१२,१६,३३,३४ णक्खत्तसंठिति (नक्षत्रसंस्थिति) १०/२७ णक्खत्तवच्छर (नक्षत्रसंवत्सर) ज ७ १०३, १०४ सू १०११२५,१२६, १२६,१२/२ ख (ख) सू २०१२ ratiस (नखीमांस) सू १०।१२० कथारी की जड नगर ( नगर ) प २।४१ मे ४३,२२६४।१७ ; ज ११२६, २१२२,६६,७०,१३१:३।१८,३१,५२, ६१,६६,८१,१३१, १३७, १४१,१६४, १६७/२, १८०,१८५,२०६५१५,४४ जगरणिमण ( नगर गिद्धमण' ) प १८४ जगरावास ( नगरावास ) प २१४१,४२,४६ Jain Education International ६२१ ज ११२६, ४।१७२ गोह ( न्यग्रोध ) प १३६२ ज २७१ गोहपरिमंडल ( न्यग्रोधपरिमण्डल ) प १५१३५, २३ ४६ ज ७ १६७ सू १०/७४ जच्च (नृत्) गच्चति ज ३|१०४, १०५: ५।५७ चण (नर्तन ) प २१४१ णज्ज (ज्ञा ) णज्जइ ज ३।१०५ ट्ट (नाट्य ) प २३१, ४१ ज २२३२३८२, १६७/१०,१८५, १८७,२०६,२१८,५१, १६, ५७७ ५५,५८,१८४ सू १८१२३, १६१२३,२६ णट्टमालग (नाट्य मालक) ज ३११५०,१५१ मालय (नाट्यमालक) ज ११२४, ४६; ६।१६ माल (नाट्यमाल) ज २८ पट्टविहि (नाट्यविधि ) ज ३।१६७ | १०:५१५७,५८ गट्टाणीय (नाट्यानीक ) ज ५१४१, ४४ ट्ठर ( नष्टरजस्) ज ५७ गडपेच्छा ( नटप्रेक्षा) ज २१३२ जत (नत) सू २०१७, २०१६१६ णतंभाग (नक्तंभाग) सू १०१४,५ पत्तु (नप्तृ ) ज २।१३३ णत्थि ( नास्ति ) प ११७५, ८०, २१५२,६४११८ ५१४३,६६,८०,६६, १८०३१२१६, ११.२१,२५, १३।१६; १५८७,६४ से १०१, १०३ से १०६, १०८ से ११०,११२ से ११७,११९ से १२३, १२५, १२६,१२८ से १३२,१३८ से १४१, १४३:१७ ७०; २१।६२ से १०१ २२ ४२; २३११३७,१३६:२८ १४२,१४५ : ३०।१७; ३६।८ से ११,१५ से २३,२५,२६,२८,३०, ३१,३३,३४,४४ सू १।१३,१४,१०।२२,२५ जद ( नद्) राति ज ५।५७ नदी (नदी) प ११1७७ ज २१३१ दीबहुल ( नदीबहुल ) ज १।१८ पुंग (नपुंसक ) प ११६६,७६,१११५ से १०,२५ से २८ पुंसगवयण (नपुंसकवचन ) प ११/२६,०६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003578
Book TitleAgam 22 Upang 11 Pushpachulika Sutra Puffachuliyao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages390
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pushpachulika
File Size7 MB
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