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अंगवाह्य की संबंध योजना निर्धारित की गई। उसके अनुसार प्रज्ञावना समवायांग का उपांग है यह सम्बन्ध योजना किस आधार पर की गई, यह अन्वेषण का विषय है । यदि प्रज्ञापना को “भगवती” का उपांग माना जाता तो अधिक बुद्धिगम्य होता ।
रचनाकार और रचनाकाल
प्रस्तुत आगम " दृष्टिवाद" का निःस्यन्द है, इस उक्ति से यह अनुमान किया जा सकता है कि इसका विषय "वृष्टिवाद" से संग्रहीत किया गया है। इसके रचनाकार आर्यश्याम है।' वे सुधर्मा स्वामी के तेवीस पट्टधर थे वे वाचकवंश की परंपरा के शक्तिशाली वाचक थे उनका अस्तित्व । । काल वीर निर्वाण की चौथी शताब्दी है ।
प्रस्तुत आगम का रचनाकाल वीर निर्वाण के ३३५ से ३७५ के बीच का संभव है । नंदी में महाप्रज्ञापना का उल्लेख किया गया है । वह अभी अनुपलब्ध है । महाप्रज्ञापना और प्रज्ञापना दोनों स्वतंत्र हैं। प्रज्ञापना महाप्रज्ञापना का अवतरण है अथवा इसमें कोई नया विषय है, यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता । बारह उपांगों में प्रज्ञापना का एक विशिष्ट स्थान है । इससे प्रतीत होता है कि इसका रचनाकाल वह है जब पूर्वो की विस्मृति हो रही थी और उसके अवशिष्ट अंशों की स्मृति शेष थी। वैसे ही समय में "पखण्डागम" की रचना हुई थी। शेष उपांग प्रज्ञापना की रचना के उत्तरकाल में लिखे गए थे। उनकी विषयवस्तु के आधार पर यह संभावना की जा सकती है उमास्वाति का अस्तित्व काल वीर निर्वाण की पांचवी शताब्दी है। उन्होंने तत्वार्थ सूत्र में "आर्या म्लेच्छाश्च" सूत्र लिया है। उसका आधार प्रज्ञापना का पहला पद हो सकता है। वहां जो आर्य और म्लेच्छ की स्पष्ट अवधारणा एवं परिभाषा है वह अन्यत्र उपलब्ध नहीं है । इस आधार पर इसका रचनाकाल उमास्वाति से पूर्ववर्ती है।
व्याख्या ग्रंथ
प्रस्तुत आगम के व्याख्याग्रंथ अनेक हैं। सबसे पहला ग्रन्थ हरिभद्रसूरि का है। व्याख्याप्रन्य की तालिका इस प्रकार है:
व्याख्या ग्रंथ
१. प्रदेशव्याख्या
२. तृतीय पद संग्रहणी
३. विति
४. अभयदेवसूरिकृत तृतीयपद संग्रहणी अवचूर्णि
५. वृत्ति
ग्रन्थाग्र
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३७२८
१३३
१४५००
ग्रन्थकर्ता
हरिभद्रसूरि
अभयदेवसूरि
मलयगिरि
कुलमण्डनगणी
अज्ञात
समय (वि० सं०)
८ वीं शताब्दी
१२ वीं शताब्दी
१. प्रज्ञापमा वृ० प० ४७१. आश्यामो यदेव प्रन्थान्तरेषु आसालिगा प्रतिपादकं गौतमप्रश्न भगवन्निर्वचनरूपं सूत्रमस्ति तदेवागम बहुमानतः पठति ।
प्रज्ञापना, वृ० प० ७२ – भगवान् आर्यश्यामोऽपि इत्थमेव सूत्रं रचयति ।"
२. तत्वार्थ सूत्र ३०३६
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का पूर्वार्ध
१३ वीं शताब्दी
१५ वीं शताब्दी
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