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( चंवृ) चंदपण्णत्ती टीका (हस्तलिखित)
यह प्रति हमारे संघीय हस्तलिखित भण्डार 'लाइन' की है इसकी पत्र संख्या १७६ है । इसकी लम्बाई-चौड़ाई १०x४ ॥ इच की है । प्रत्येक पत्र में पंक्ति ६ व प्रत्येक पंक्ति में अक्षर ५० करीब है | प्रति सुन्दर है । लिपि संवत् १७६२ ।
(ट) चंदपण्णत्तो टब्बा (हस्तलिखित )
जैन विश्व भारती लाडनूं हस्तलिखित ग्रंथालय । पत्र ५७ । निरयावलियाओ प्रति- परिचय
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(क) निरयावलियाओ मूलपाठ (हस्तलिखित)
यह प्रति जेसलमेर मंडार की ताडपत्रीय ( फोटोप्रिन्ट) मदनचन्दजी गोठी 'सरदारशहर' द्वारा प्राप्त है । इसके पत्र २५ व पृष्ठ ५० हैं । फोटो प्रिंट के पत्र है है । एक पत्र में ६ पृष्ठों के फोटो है। किसी में न्यूनाधिक भी है । प्रत्येक पत्र १२ इंच लम्बा व 3 इंच चौड़ा है। प्रत्येक पृष्ठ में पाठ की पांच पंक्तियां हैं, किसी पत्र में दो-दो तीन-तीन पंक्तियां भी हैं । कहीं-कहीं पंक्तियां अधूरी भी हैं । प्रत्येक पंक्ति में करीब ४५ से ५० तक अक्षर है। प्रति के अंत में प्रशस्ति नहीं है ।
(ख) निश्यावलियाओ मूलपाठ (हस्तलिखित)
यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधेया पुस्तकालय 'सरदारशहर' की है। इसके पत्र १६ तथा पृष्ठ ३८ हैं । प्रति १३३ इंच लम्बी व ५ इंच चौड़ी है । प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तिया तथा प्रत्येक पंक्ति में करीब ७१ से ७५ तक अक्षर हैं। प्रति काली स्याही से लिखी हुई है। प्रति के मध्य भाग में बावड़ी व उसके बीच में लाल स्याही का टीका लगा हुआ है । लेखन संवत् नहीं है । परन्तु उसके साथ की प्रति के आधार पर अनुमानित १६ वीं शताब्दी की है । प्रति सुंदर, स्पष्ट तथा शुद्ध लिखी हुई है । (ग) निरयावलियाओ टब्बा (हस्तलिखित)
यह प्रति जैन विश्व भारती हस्तलिखित ग्रन्थालय, लाडनूं की है । इसके पत्र ६३ तथा पृष्ठ १२६ है । प्रत्येक पत्र पाठ की ७ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में अक्षर करीब ३५ से ४५ तक हैं । यह प्रति १०३ इंच लम्बी तथा ४३ इंच चौड़ी है । लिपि सं० १८३३ ।
(a) निरयावलियाओ वृत्ति (हस्तलिखित )
यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधेया पुस्तकालय 'सरदारशहर' की है। इसके पत्र ८ हैं । यह १३३ इंच लंबी ५ इंच चौड़ी है । लिपि संम्वत् १५७५ है !
( मुवृ) मुद्रित वृत्ति
ए. एस. गोपाणी एण्ड वी. जे. चोकसी। प्रकाशित - शंभूभाईजगसीशाह, गुर्जर ग्रन्थरस्न कार्यालय, गांधी रोड़ अहमदाबाद प्रकाशन १९३४
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जैन परम्परा में वाचना का इतिहास बहुत प्राचीन है। आज से १५०० वर्ष पूर्व तक आगम
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