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इस तरह अथक परिश्रम के द्वारा प्रस्तुत इस ग्रन्थ के प्रकाशन का सुयोग पाकर जैन विश्व भारती अत्यंत कृतज्ञ है।
जैन विश्व भारती २६-६-८७ लाडनूं (राज.)
श्रीचंद रामपुरिया
कुलपति
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