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________________ ४. जम्बूद्वीप का विस्तृत वर्णन ५. तीर्थंकर का जन्माभिषेक ६. जम्बूद्वीप की भौगोलिक स्थिति ७. ज्योतिश्चक रचनाकार और रचनाकाल प्रस्तुत आगम उपोग के वर्गीकरण का सम्ध है। इससे यह स्पष्ट है कि इसकी रचना भगवान् महावीर के निर्वाणोत्तर काल में हुई है । इसके रचनाकार कोई स्थविर थे । उनका नाम अज्ञात है । रचना का काल भी ज्ञात नहीं है । जीवाजीवाभिगम स्थविरों द्वारा कृत है । उसमें कल्पवृक्षों का विस्तृत वर्णन है । इसमें उनका संक्षिप्त रूप उपलब्ध है। विस्तार की सूचना 'जाव' पद के द्वारा दी गई है। इससे प्रतीत होता है कि यह जीवाजीवाभिगम के उत्तरकाल की रचना है। संभवतः श्वेताम्बर और दिगम्बर का स्पष्ट भेद होने के पूर्वकाल की रचना है। जंबूदीप के विषय में दोनों परंपराओं में प्रायः ऐकमत्य है । इस आधार पर इसका रचनाकाल वीर निर्वाण की चौथी पांचवीं शताब्दी के आस-पास अनुमित किया जा सकता है। व्याख्या-ग्रन्थ प्रस्तुत आगम पर नौ उपास्याएं उपलब्ध हैं। उनमें केवल शांतिचन्द्रीयवृत्ति मुद्रित है, शेष अप्रकाशित हैं। शान्तिचन्द्र ने यह उल्लेख किया है कि मलयगिरि की टीका काल-दोष से विच्छिन्न हो गई है । किन्तु आधुनिक विद्वानों ने उसे खोज निकाला है। वह जैसलमेर के भण्डार में उपलब्ध है ।" शान्तिचन्द्रीय और पुण्यसागरीय वृत्ति में धूणि का भी उल्लेख है ।" इन व्याख्या ग्रन्थों की तालिका इस प्रकार है- ग्रन्थान्र ग्रन्थ १. चूर्णि २. टीका ( प्राकृतभाषा ) ३. टीका ४. वृति ५. वृत्ति ६. टीका (प्रमेयरत्नमञ्जूषा ) ३३ १४२५२ १३२७५ Jain Education International १८००० कर्ता अज्ञातकर्तुक हरिभद्रसूरि मलयगिरि हीरविजयसूरि पुण्यसागर शान्तिचन्द्र १६६० १. शान्तिचन्द्रया वृत्ति पत्र २ तत्र प्रस्तुतोपाङ्गस्य वृत्तिः श्रीमलयगिरिकृताऽपि संप्रति काल दोषेण व्यवच्छिन्ना । २. द्रष्टव्य जैन रत्नकोश, पृ० १३० ३. शान्तिचन्द्रीया वृत्ति, पत्र १६, परिध्यानयनोपायस्त्वयं चूर्णिकारोक्तः । वृ० प० ५३, २५२, २७८ पुण्यसागरीयवृत्ति पत्र १२२" एतच्चूर्णो च ।" For Private & Personal Use Only रचनाकाल वि० [सं० १६३९ १६४५. " www.jainelibrary.org
SR No.003573
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Chandapannatti Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages390
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_chandrapragnapti
File Size12 MB
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