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________________ नवमं सतं (बत्तीसइमो उद्देसो) ४२३ रयणप्पभाए संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा । अहवा दो रयणप्पभाए संखेज्जा सक्करप्पभाए होज्जा, एव जाव अहवा दा रयणप्पभाए संखेज्ना अहंसत्तमाए होज्जा । ग्रहवा तिण्णि रयणप्पभाए संखेज्जा सक्करप्पभाए होज्जा । एवं एएणं कमेणं एक्केक्को संचारेयव्दो जाव अहवा दस रयणप्पभाए संखेज्जा सक्करप्पभाए होज्जा। एवं जाव अहवा दस रयणप्पभाए संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा संखेज्जा रयणप्पभाए संखेज्जा सक्करप्पभाए होज्जा जाव अहवा संखेज्जा रयणप्पभाए सखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा । अहवा एगे सक्करप्पभाए संखेज्जा बालूयप्पभाए होज्जा, एवं जहा रयणप्पभा उवरिमपूढवीहि समं चारिया एवं सक्करप्पभा वि उवरिमपूढवीहि समं चारेयव्वा, एवं एक्केक्का पुढवी उवरिमपुढवीहि समं चारेयव्वा जाव अहवा संखेज्जा तमाए संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा एगे रयणप्प भाए एगे सक्करप्पभाए खेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा, प्रहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए संखेज्जा पंकप्पभाए होज्जा जाव अहवा एगे रयणप्पभाए एगं सक्करप्पभाए संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा । अहवा एगे रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए संखेज्जा वालयप्पभाए होज्जा जाव अहवा एगे रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा । अह्वा एगे रयणप्पभाए तिष्णि सक्करप्पभाए संज्जा वालुयप्पभाए होज्जा, एवं एएणं कमेणं एक्ने क्को संचारेयव्यो सक्करप्पभाए जाव अहवा एगे रयणप्पभाए संखेज्जा सक्करप्पभाए संवेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा जाव अहवा एगे रयणप्पभाए संखेज्जा वालुयप्पभाए संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा । अहवा दो रयणप्पभाए संखेज्जा सक्करप्पभाए संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा जाव अहवा दो रयणप्पभाए संखेज्जा सक्करप्पभाए संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा । अहवा तिण्णि रयणप्पभाए संखेज्जा सक्करप्पभाए संखेज्जा वालयप्पभाए होज्जा. एवं एएणं कमेणं एक्केको रयणप्पभाए संचारेयन्वो जाव अहवा संखेज्जा रयणप्पभाए संखेज्जा सक्करप्पभाए संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा जाव अहवा संखेज्जा रयणप्पभाए संखेज्जा सक्करप्पभाए संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा एगे रवणप्पभाए एगे वालुयप्पभाए संखेज्जा पंकप्पभाए होज्जा जाव अहवा एगे रयणप्पभाए एगे वालुयप्पभाए संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा । अहवा एगे रयणप्पभाए दो वालुयप्पभाए संखेज्जा पंकप्पभाए होज्जा, एवं एएणं कमेणं तियासंजोगो, चउक्कसंजोगो जाव सत्तगसंजोगो य जहा दसण्हं तहेव भाणियब्यो । पच्छिमो पालावगो सत्तसंजोगस्स- अहवा संखेज्जा रयणप्पभाए संखेज्जा सक्करप्पभाए जाव संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा ।। ६६. असंखेज्जा भंते ! ने रइया नेरइयप्पवेसणएणं पविसमाणा कि रयणप्पभाए होज्जा ? --पुच्छा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003561
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages1158
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size19 MB
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