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________________ उद्देशक उद्देशक १२ २५ अक्षर-परिमाण ४५१०३ ४४५५ अक्षर-परिमाण शतक २४६३५ ४८५३४ ४५८५६ २७ ६६०७ ३२३३८ ३२८०८ २१६१४ १६०३३ ३६८१२ ३३ (१२) १५९३६ ३४ (१२) ८४१२ ३५ (१२) २२४४३ ३६ (१२) ८०२७ ३७ (१२) १६८७१ ३८ (१२) १६३० ३६ (१२) १०६८ ४० (२१) MMMMorus १०२७ ४७६४ २३४४ १२४ १२४ १३२ १३२ १३२ १३२ १३२ २३१ ३०५६ १९६४ ४१८१ ७३१ ११५ ८७ २१ (आठ वर्ग)८० २२ (छह वर्ग) ६० २३ (पांच वर्ग) ५० २४ २७३४ ४१ ३६६२६ कुल १३८ कुल १९२३' कुल ६१८२२४ भाषा और रचना-शैली प्रस्तुत आगम की भाषा प्राकृत है। कहीं-कहीं शौरसेनी के प्रयोग भी मिलते हैं। इसमें देशी शब्दो का प्रयोग भी स्थान-स्थान पर मिलता है, जैसे--खत्त, डोंगर (७१११७), टोल (७१११९), मग्गओ (७.१५२), बोंदि (३।११२), चिखल्ल (८।३५७) । इसकी भाषा बहुत सरल और सरस है । अनेक प्रकरण कथा-शैली में लिखे गए हैं। जीवनप्रसंग, घटनाएं और रूपक स्थान-स्थान पर उपलब्ध होते हैं। स्थान-स्थान पर कठिन विषयों को उदाहरणों द्वारा समझाया गया है । प्रस्तुत आगम की रचना गद्य शैली में हुई है। कहीं-कहीं स्वतन्त्र रूप से प्रश्नोत्तरों का क्रम चलता है और कहीं-कहीं किसी घटनाक्रम के बाद उनका क्रम चलता है। प्रतिपाद्य विषय का संकलन करने के लिए संग्रहणी गाथाओं के रूप में कुछ पद्य भाग भी मिलता है। १. बीसवें शतक के छठे उद्देशक में पृथ्वी, अप और वायु--इन तीनों की उत्पत्ति का निरूपण है। एक परम्परा के अनुसार यह एक उद्दे पाक है, दूसरी परम्परा के मत में ये तीन उद्देशक हैं। इस परम्परा के अनुसार प्रस्तुत आगम के कुल उद्देशक १९२५ हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003561
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages1158
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size19 MB
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