SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 283
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२२ भगवई • गोयमा ! एवं बुच्चइ - प्रसुरकुमारा सारंभा सपरिगहा, नो यणारंभा अपरिग्गहा ॥ 0 १८६. एवं जाव थणियकुमारा । एगिंदिया जहा नेरइया || १८७. बेइंदिया णं भंते ! कि सारंभा सपरिग्गहा ? उदाहु यणारंभा अपरिग्गहा ? तं चैव बेइंदिया णं पुढविकार्य समारंभंति जाव तसकार्य समारंभंति, सरीरा परिग्गहिया भवंति कम्मा परिगहिया भवंति, वाहिरा भंड- मत्तोवगरणा परिग्गहिया भवति, 'सचित्ताचित्त-मीसयाई दव्वाइं परिग्महियाई भवंति " ॥ १८८. एवं जाव' चउरिदिया || १८६. पंचिदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! किं सारंभा सपरिग्गहा ? उदाहु प्रणारंभा अपरिग्गहा ? तं चैव जाव' कम्मा परिग्गहिया भवंति टंका कूडा सेला सिहरी पब्भारा परिगहिया भवंति, जल-थल - बिल-गुह-लेणा परिग्गहिया भवंति, उज्झर-निज्झर चिल्लल-पल्लल' - वप्पणा परिग्गहिया भवंति, प्रगड - तडाग" - दह-नईग्रो वावी ; क्खरिणीदीहिया गुंजालिया सरा सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ विलपतियाश्रो परिग्गहियाओ भवति, आरामुज्जाण" काणणा वणा वणसंडा वणराईश्रो " परिगहिया भवंति देवउल- सभ-पव- धूभ - खाइय- परिखाओ परिग्गहियाश्रो भवंति, पागार अट्टालग - चरिय-दार गोपुरा परिग्गहिया भवंति, पासाद-घरसरण-लेण प्रवणा परिग्गहिया भवंति, सिंघाडग-तिग- चउक्क- चच्चर-चउम्मुहमहापह पहा परिग्गहिया भवंति, सगड - रह जाण-जुग्ग- गिल्लि - थिल्लि सीयसंदमणिया परिग्गहियाश्रो भवति, लोही-लोहकडाह - कडुच्छया परिगहिया भवंति भवणा परिग्गहिया भवति, देवा देवोश्रो मणुस्सा मणुस्सीम्रो तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणिणी परिग्गहिया भवंति आसण-सयण-खंभ- भंडसचित्ताचित्त-मीसयाइं दव्वाइं परिग्गहियाइं भवति । से तेणद्वेणं ॥ 1 १६०. जहा तिरिक्खजोणिया तहा मणुस्सा वि भाणियव्वा । वाणमंतर - जोइसमणिया जहा भवणवासी तहा नेयव्वा" | १. पू० प० २ । २. भ० ५।१८२, १८३ । Jain Education International ३. ४. ४० ५।१८३ । ५. बाहिरिया ( अ, क, ब, म, स ) । ६. X (अ) : ७. भ० २।१३८ । ८. भ० ५।१८३ । 8. पिल्लव ( ब ) । १०. तलाग (क, ता, ब, म) । ११. ० मुज्जारा (क, ब, स ) 1 १२. वरातीओ ( अ, ता, स) । १३. भ० ५।१८४, १८५ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003561
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages1158
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy