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तइयं सतं (छट्ठो उद्देसो) २३१. अणगारे णं भंते ! भाविअप्पा अमायी सम्मदिट्टी वीरियलद्धीए वे उब्वियलद्धीए
ओहिनाणलद्धोए रायगिह नगरं समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए नयरीए रूवाइं जाणइ-पासइ?
हंता जाणइ-पासइ ।। २३२. से भंते ! कि तहाभावं जाण इ-पासइ ? अण्णहाभावं जाणइ-पास इ ?
गोयमा ! तहाभावं जाणइ-पासइ, नो अण्णहाभावं जाण इ-पासइ ।। २३३. से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ-तहाभावं जाणइ-पासइ, नो अण्णहाभावं
जाणइ-पास इ ? गोयमा ! तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं रायगिहे नयरे समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए नयरीए रूवाइं जाणामि-पासामि । सेस दंसण-अविवच्चासे भवति । से तेण?ण गोयमा ! एवं वुच्चइ-तहाभावं जाणइ-पासइ, नो अण्णहाभावं
जाणइ-पासइ !! २३४. अणगारे णं भंते ! भाविअप्पा अमायी सम्मदिट्ठी वीरियलद्धीए वे उब्वियलद्धीए
मोहिनाणलद्धीए वाणारसिं नार समोहए, समोहणित्ता रायगिहे नगरे रूवाई जाणइ-पासइ?
हंता जाणइ-पासइ॥ २३५. से भंते ! किं तहाभावं जाणइ-पासइ ? अण्णहाभावं जाणइ-पासइ ?
गोयमा ! तहाभाव जाणइ-पासइ, नो अण्णहाभाव जाणइ-पासइ ।। २३६. से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ-तहाभाव जाणइ-पासइ ? नो अण्णहाभावं
जाणइ-पासइ ? गोयमा ! तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं वाणारसि नगरि समोहए, समोहणित्ता रायगिहे नगरे रूवाइं जाणामि-पासामि । सेस दंसण-अविवच्चासे भवति । से तेगट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-तहाभाव जाणइ-पासइ, नो अण्णहाभावं
जाणइ-पासइ ।। २३७. अणगारे णं भंते ! भाविअप्पा अमायी सम्मदिट्ठी वीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए
प्रोहिनाणलद्धीए रायगिह नगर, वाणारसिं च नगरि, अंतरा एगं महं जणवयग्ग' समोहए, समोहणित्ता रायगिहं नगरं, वाणा रसिं च नगरि, अंतरा" एगं महं जण वयग्गं जाणइ-पासई? हंता जाणइ-पासई॥
३. जणवयवग्ग (क, म, स); जगवदग्गं (ता) । ४. तं च अंतरा (क, ता, ब, म)।
१. तहारूवं (क) २. सं० पा०-बितिओ वि आलावगो एवं चेव
नवरं वारपारसीए समोहया ऐयवा। रायगिहे नगरे रूवाई जारगइ पासइ ।
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