SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ K मैं आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर भार-मुक्त होऊ, उसकी अपेक्षा अच्छा है कि अग्रिम कार्य के लिए उनके आशीर्वाद का शक्ति-संबल पा और अधिक भारी बनू। प्रस्तुत आगम के सम्पादन में पाठ-सम्पादन के स्थायी सहयोगी मुनि सुदर्शनजी, मधुकरजी और हीरालालजी के अतिरिक्त मुनिश्री कानमल जी, छत्रमलजी, अमोलकचन्दजी, दिनकरजी,पूनमचन्दजी, कन्हैयालाल जी, राजकरणजी, ताराचन्दजी, वालचन्द्रजी, विजयराजजी, मणिलालजी, महेन्द्रकुमारजी (द्वितीय), सम्पतमलजी (गरगढ़), शान्तिकुमारजी, मोहनलालजी (शार्दूल) और श्रीमन्नालाल जी बोरड़ का योग रहा है। पाठ-सम्पादन का कार्य सं० २०२६ पौष कृष्णा (२८ दिसम्बर १९७२) को सरदारशहर (राजस्थान) में आरम्भ किया गया और वह सं० २०३० फाल्गुन शुक्ला ११ (४ मार्च १६७४) को दिल्ली में पूरा हुआ। प्रति शोधन में मुनि सुदर्शनजी, मधुकरजी, हीरालालजी और दुलहराजजी ने बहुत श्रम किया है। इसका ग्रन्थ-परिमाण मुनि मोहनलाल जी आमेट ने तैयार किया है। ___कार्यनिष्पत्ति में इनके योगका मूल्यांकन करते हुए मैं इन सबके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ। आगमविद् और आगम-संपादन के कार्य में सहयोगी स्व० श्री मदनचन्दजी गोठी को इस अवसर पर विस्मृत नहीं किया जा सकता । यदि वे आज होते तो भगवती के कार्य पर उन्हें परम हर्ष होता। आगम के प्रबन्ध सम्पादक श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया प्रारम्भ से ही आगम कार्य में संलग्न रहे हैं । आगम साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने के लिए वे कृत-संकल्प और प्रयत्नशील हैं। अपने सुव्यवस्थित वकालत कार्य से पूर्ण निवृत्त होकर अपना अधिकांश समय आगम-सेवा में लगा रहे हैं। 'अंगसुत्ताणि' के इस प्रकाशन में इन्होंने अपनी निष्ठा और तत्परता का परिचय दिया है। 'जैन विश्व भारती' के अध्यक्ष श्री खेमचन्द जी सेठिया, 'जैन विश्व भारती' तथा 'आदर्श साहित्य संघ' के कार्यकर्ताओं ने पाठ-सम्पादन में प्रयुक्त सामग्री के संयोजन में बड़ी तत्परता से कार्य किया है। एक लक्ष्य के लिए समान गति से चलने वालों की समप्रवृत्ति में योगदान की परम्परा का उल्लेख व्यवहारपतिमात्र है। वास्तव में यह हम सब का पवित्र कर्तव्य है और उसी का हम सबने पालन किया है। अणुव्रत विहार नई दिल्ली १-१०-७४ मुनि नथमल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003561
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages1158
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy