________________
१५८
भगवई
o
घट्टइ खुब्भइ उदीरइ तं तं भावं परिणमइ, तावं च णं से जीवे - 'आरभइ सारभइ समारभइ", आरंभे वट्टइ सारंभे वट्टइ समारंभ बट्टइ, 'आरभमाणे सारभमाणे समारभमाणे", आरंभे वट्टमाणे सारंभे वट्टमाणे समारंभे वट्टमाणे बहूणं पाणणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं दुक्खावणयाए' सोयावणयाए जूरावणयाए तिप्पाणयाए पिट्टावणयाए परियावणयाए वट्टइ ॥
से तेणणं मंडित्ता ! एवं बुच्चइ - जावं च गं से जीवे सया समितं एयति' • वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुम्भइ उदीरइ तं तं भावं परिणमइ, तावं च णं तस्स जीवस्स अंते अंतकिरिया न भवति ॥
१४६. जीवे णं भंते ! सया समितं नो एयति' नो वेयति नो चलति नो फंदइ नो
0
घट्टइ नो खुबभइ नो उदीरइ नो तं तं भावं परिणमइ ?
हंता मंडिग्रपुत्ता ! जीवे णं सया समितं नो एयति नो वेयति नो चलति नो फंदइ नो घट्टइ नो खुब्भइ नो उदीरइ नो तं तं भावं परिणमइ || १४७. जावं च णं भंते! से जीवे नो एयति' नो बेयति नो चलति नो फंदइ नो घट्टइ नो खुब्भइ नो उदीरइ० नो तं तं भावं परिणमइ, तावं च णं तस्स जीवस्स अंते तकिरिया भवइ ?
हंता' ममिपुत्ता ! जावं च णं से जीवे नो एयति नो वेयति नो चलति नो फंदइ नो घट्टइ नो खुब्भइ नो उदीरइ नो तं तं भावं परिणमइ, तावं च णं तस्स जीवस्स अंते अंतकिरिया भवइ ||
१४८. से केणट्टेणं' "भंते ! एवं बुच्चइ - जावं च णं से जीवे नो एयति नो वेयति नो चलति नो फंदइ नो घट्टइ नो खुब्भइ नो उदीरइ नो तं तं भावं परिणमइ, तावं च णं तस्स जीवस्स अंते अंतकिरिया भवइ ?
Jain Education International
मंडित्ता ! जावं च णं से जीवे सया समितं नो एयति" नो वेयति नो चलति नो फंदइ नो घट्टइ नी खुब्भइ नो उदीरइ नो तं तं भावं परिणमइ, तावं चणं से जीवे नो आरभइ नो सारभइ नो समारभइ, नो आरंभे वट्टइ नो सारंभे वट्टइ नो समारंभे वट्टइ, अणारभमाणे असारभमाणे असमारभमाणे, आरंभे वट्टमाणे सारंभ अवट्टमाणे समारंभे श्रवट्टमाणे वहूणं पाणाणं भूयाणं
१. आरंभइ सारंभइ समारंभ ( अ, स ) 1 २. आरंभमाणे सारंभमाणे समारंभमाणे (अ) क, ता, स) ।
३. क्वचित्पठ्यते--' दुक्खणयाए' इत्यादि, तच्च व्यक्तमेव, यच्च तत्र 'किलामायाए उद्दarrare, इत्यधिकमभिधीयते (वृ) । ४. सं० पा०-- एयति जाव परिमणइ |
५. सं० पा०- - एयति जाव नो ।
६.
सं० पा० – समितं जाव नो ।
७.
सं० पा० - एयति जाव नो ।
८.
सं० पा०-- हंता जाव भवइ ।
६.
सं० पा० - केणट्टेणं जाव भवइ ।
१०.
सं० पा०-- एयति जाव नो ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org