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________________ 156 158 168 ब्रह्मचर्य व्रत रक्षार्थ : वेश्यालयादि के निकट मे गमन-निषेध भिक्षाचर्या के समय शरीरादि चेष्टा-विवेक गृह-प्रवेश-विधि-निषेध पाहार-ग्रहण-विधि-निषेध अनिसृष्ट-ग्राहार-ग्रहण निषेध और निःसृष्ट ग्रहणविधान गर्भवती एवं स्तनपायिनी नारी से भोजन लेने का निषेध-विधान शंकित और उभिन्न दोपयुक्त आहार-ग्रहगनिषेध दानार्थ-प्रकृत आदि पाहार-ग्रहण का निषेध प्रौद्द शिकादि दोपयुक्त आहार-ग्रहण निषेध वनस्पति-जल-अग्नि पर निक्षिप्त प्राहार-ग्रहणनिषेध अस्थिर जिलादि-संक्रनग करके गमन-निषेध और कारण 'मालापहृत' दोषयुक्त आहार अग्राह्य प्रामक वनस्पति ग्रहण-निषेध मचित्तरज़ से लिप्त वस्तु भी अग्राह्य बह-उज्झितधर्मा फल प्रादि के ग्रहण का निषेध पान-ग्रहण-निषेध-विधान भोजन करने की ग्रापवादिक विधि साधु-सात्रियों के पाहार करने की सामान्य विधि मुधादायी और मुधाजीवी की दुर्लभता और दोनों की सुगति पात्र में गृहीत समग्र भोजन-सेवन का निर्देश पर्याप्त पाहार न मिलने पर पुन: प्राहार-गवेवणा-विधि यथाकालचर्या करने का विधान भिक्षार्थ गमनादि में यतना-निर्देश सचित, अनिर्वत, प्रामक एवं अगस्त्र-परिणत के ग्रहण का निषेध सामुदानिक भिक्षा का विधान दीनता, स्तुति एवं कोप प्रादि का निषेध स्वादलोलुप और मायावी माधु की दुत्ति का चित्रण और दुष्परिणाम मद्यपान : स्तन्यवृद्धि आदि तज्जनित दो एवं दुष्परिणाम षष्ठ अध्ययन : धर्मार्थकामाऽध्ययन (महाचार-कथा) प्राथमिक गजा प्रादि द्वारा निन्थों के प्राचार के विषय में जिज्ञासा प्राचार्य द्वारा निर्ग्रन्थाचार की दुश्वरता और अठारह स्थानों का निरूपण प्रथम आचारस्थान : अहिंसा द्वितीय प्राचारस्थान : सत्य (मृपावादविरमण) ततीय प्राचारस्थान : अदत्तादान-निषेध (प्रचौर्य) चतुर्थ ग्राचारस्थान : ब्रह्मचर्य (अब्रह्मचर्य-मेवन-निषेध) पंचम अाचारस्थान : अपरिग्रह (सर्वपरिग्रह-विरमण) rwAY [78 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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