________________ दया। मन् 1940 में संस्कृत टीका के माय संपादक प्राचार्य हस्तीमलजी महाराज ने जो दशवकालिका का मंस्करण तैयार किया वह मोतीलाल बालचन्द मूथा सतारा के द्वारा प्रकाशित हुा / मन् 1954 में मुमति साधु विरचित वत्ति सहित दशवकालिक का प्रकाशन देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार सूरत से हुआ। नियंक्ति, अगम्त्यमिह चणि का सर्वप्रथम प्रकाशन मन 1973 में पुण्यविजय जी म. द्वारा संपादित होकर प्राकृत ग्रन्थ परिषद वाराणसी द्वारा किया गया / विक्रम संवत् 1989 में प्राचार्य प्रात्माराम जी कृत हिन्दी टीका सहित दशवकालिका का संस्करण ज्वालाप्रसाद माणकचन्द जौहरी महेन्द्रगढ़ (पटियाला) ने प्रकाशित किया। उसी का द्वितीय संस्करण विक्रम मंवत् 2003 में जैनशास्त्र माला कार्यालय लाहौर से हुआ। सन् 1957 और 1960 में प्राचार्य घासीलाल जी म. विरचिन संस्कृतव्याम्या और उसका हिन्दी और गुजराती अनुवाद जैन शास्त्रोद्धार समिति राजकोट से हुआ। बीर संवत् 2046 में आचार्य अमोलक ऋषि जी ने हिन्दी अनुवाद सहित दशवकालिक का एक संस्करण प्रकाशित किया। वि. सं. 2000 में मुनि अनर चंद्र पंजाबी संपादित दशकालिक का संस्करण विलायतीराम अग्रवाल माच्छीवाड़ा द्वारा प्रकाशित हुया और संवत् 2002 में घेवर चंद जी वांडिया द्वारा मंपादित संस्करण मेठिया जैन पारमार्थिक संस्था बीकानेर द्वारा और बांठिया द्वारा ही संपादित दशकालिक का एक संस्करण संवत् 2020 में साधुमार्गी जैन मस्कृतिक रक्षक संघ सैलाना से प्रकाशित हुग्रा / सन् 1936 में हिन्दी अनुवाद सहित मुनि सौभाग्यचन्द्र मन्तवाल ने संपादित किया, वह संस्करण श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कान्फ्रेंस बम्बई ने प्रकाशित करवाया। मुल टिप्पण सहित दशवकालिक का एक अभिनव संस्करण मुनि नथमल जी द्वारा संपादित वि. संवत् 2020 में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा पोवंगीज चर्च स्ट्रीट, कलकत्ता में और उमी का द्वितीय संस्करण सन् 1974 में जैन विश्व भारती लाइन से प्रकाशित हुग्रा / सन् 1939 में दशवकालिक का गुजराती छायानुवाद गोपालदास जीवाभाई पटेल ने तैयार किया, वह जैन साहित्य प्रकाशन समिति अहमदाबाद से प्रकाशित हया / इसी तरह दशवकालिक का अंग्रेजी अनुवाद जो W. Schubring द्वारा किया गया, अहमदाबाद से प्रकाशित हुअा है। सन् 1937 में पी. एल. वैद्य पूना ने भी दशवकालिक का आंग्ल अनुवाद कर उसे प्रकाशित किया है। दशकालिक का मूल पाठ सन् 1912, सन् 1924 में जीवराज घेलाभाई दोशी अहमदाबाद तथा मन् 1930 में उम्मेदचंद रायचंद अहमदाबाद, सन् 1938 में हीरालाल हमराज जामनगर, वि. सं. 2010 में शान्तिलाल वनमाली सेठ, ब्यावर, सन् 1794 में श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय उदयपुर तथा अन्य अनेक स्थलों से दशवकालिक के मूल संस्करण छपे हैं। श्री पुण्यविजयजी द्वारा संपादित और श्री महावीर जैन विद्यालय वम्बई से मन् 1977 में प्रकाशित संस्करण सभी मूल संस्करगों से अधिक महत्त्वपूर्ण है। इस संस्करण में प्राचीनतम प्रतियों के आधार से अनेक शोधप्रधान पाठान्नर दिए गर हैं, जो शोधार्थियों के लिए बहत ही उपयोगी हैं। पाठ शुद्ध है। स्थानकवासी समाज एक प्रबुद्ध और क्रान्तिकारी मनाज है। उसने मनय-समय पर विविध स्थानों से प्रागनों का प्रकाशन किया तथापि अाधुनिक दृष्टि से प्राममों के मर्वजनोपयोगी संस्करण का अभाव खटक रहा था। उस अभाव की पूर्ति का संकल्स मेरे श्रदेय सद्गुरुवर्य राजस्थानकेसरी अध्यात्मयोगी पुज्य उपाध्याय श्री पुष्करमुनि जी म. के स्नेह-माथी व महमाठी श्रमण संघ के युवाचार्य श्री मिश्रीमल जी मधकर मुनि जी ने किया। युवाचार्य श्री ने इस महाकार्य को शीघ्र सम्पन्न करने हेतु सम्पादकमण्डल का गठन किया और माथ [ 75 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org