________________ [429 पूर प्रथम परिशिष्ट : दशवकालिकसूत्र का सूत्रानुक्रम] सीग्रोदग-समारंभे 314 सुक डे ति सुपक्के त्ति 372 सुक्कीयं वा सुविक्कीयं 376 सुद्धपुढवीए न विसिए 363 +सूयं मे पाउसं! तेण भगवया एवमक्खायं-इह खलु छज्जीवणिया + सुयं मे पाउसं ! तेण भगवया एवमक्खायं-इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमाहिढाणा." सुयं वा जइ वा दिट्ठ 406 सुरं वा मेरगं वा वि 246 सुहसायगरस (सीलगस्स) समणस्स से गामे वा नगरे वा से जाणमजाणं वा से जे पुण इमे अणेगे बहवे तसा पाणा+ 40 सेज्जा निसीहियाए 215 सेज्जायरपिंडं च 21 सेडियगतेण हत्थेण 127 से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरय "से अगणि वा+ से भिक्खू वा भिक्खणी वा संजय+ इस चिह्न से अंकित मद्यपाठात्मक समझे। -सं. विरय " से उदगं वा+ से भिक्खू वा भिवखुणी वा संजयविरय"से कीड वा+ से भिक्खू बा भिक्खुणी वा संजयविरय""से पुढवि वा+ से भिक्ख वा भिक्खुणी वा संजयविरय""से बीएसु वा+ से भिक्ख वा भिक्खुणी वा संजयविरय"से सिएण वा+ सोच्चा जाणाइ कल्लाणं सोच्चाण मेहावि सुभासियाई सोरट्ठियगतेण हत्थेण सोवच्चले सिंधवे लोणे हत्थं पायं च कायं च हत्थ-पाय-पडिच्छिन्नं हत्थसंजए पायसंजए हरितालगतेण हत्थेण हले हले त्ति अन्ने त्ति हंदि धम्मत्थ-कामाणं हिंगुलुयगतेण हत्थेण हे हो हलेत्ति अन्नेत्ति होज्ज कट्ठ सिलं वा वि 80 468 128 24 416 432 443 535 120 347 267 121 350 178 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org