________________ नवमं अज्झयणं : विणय-समाही नवम अध्ययन : विनय-समाधि तइओ उद्देसो : तृतीय उद्देशक विनीत साधक की पूज्यता 492. आयरियऽग्गिमिवाऽऽहियग्गी, सुस्सूसमाणो पडिजागरेज्जा। आलोइयं इंगियमेव गच्चा, जो छंदमाराहयई, स पुज्जो // 1 // 493. आयारमट्ठा विणयं पउंजे, सुस्सूसमाणो परिगिज्म बक्कं / जहोवइट्ठ अभिकंखमाणो, गुरु तु नाऽऽसाययई, स पुज्जो // 2 // 494. राइणिएस विणयं पउंजे, डहरा विय जे परियायजेट्ठा। = नियत्तणे वट्टइ सच्चवाई, xओवायवं वक्ककरे, स पुज्जो // 3 // 495. अन्नाय-उंछ चरई विसुद्ध, जवणट्ठया समुयाणं च निच्चं / अलद्धयं नो परिदेवएज्जा, लद्धन विकत्थयई। स पूज्जो // 4 // 496. संथार सेज्जाऽऽसण-भत्त-पाणे, ___ अपिच्छया अइलाभे वि संते / ___ जो एवमप्पाणऽभितोसएज्जा, संतोसपाहन्न-रए, स पुज्जो // 5 // पाठान्तर-* पडिगिभ। - नीप्रत्तणे / x उवाय। 0 विकत्थइ, विकथयई। सिज्जाऽऽसण / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org