________________ 190 [दशवकालिकसूत्र 'मालापहृत' दोषयुक्त आहार अग्राह्य 180. निस्सेणि फलगं पीढं उस्सवित्ताणमारुहे / मंचं कोलं च पासायं, समणट्ठाए व दावए // 98 // 181. दुरूहमाणो पवडेज्जा, हत्थं पायं व लूसए / पुढविजीवे विहिसेज्जा, जे य तन्निसिया जगा / / 19 / / 182. एयारिसे महावोसे जाणिऊण महेसिणो / तम्हा मालोहडं भिक्खं न पडिगेण्हंति संजया // 100 / [180-181-182] यदि आहारदात्री श्रमण के लिए निसैनी, फलक (पाटिया) या पीठ (चौको) को ऊँचा करके मंच (मचान), कोलक (खूटी, खीला या स्तम्भ) अथवा प्रासाद पर चढ़े, (और वहाँ से भक्त-पान लाए तो साधु या साध्वी उसे ग्रहण न करे); क्योंकि निसनी श्रादि द्वारा दुःखपूर्वक चढ़ती हुई (वह स्त्री) गिर सकती है, उसके हाथ-पैर प्रादि टूट सकते हैं / (उसके गिरने से नीचे दब कर) पृथ्वी के जीवों की तथा पृथ्वी के आश्रित रहे हए त्रस जीवों की हिंसा हो सकती है। अतः ऐसे महादोषों को जान कर संयमी महर्षि मालापहृत (-दोषयुक्त) भिक्षा नहीं ग्रहण करते // 18-66-100 / / विवेचन मालापहत : स्वरूप और प्रकार-प्राचीनकाल में नमी, सीलन अथवा जीव-जन्तु और चींटी, चहा, दीमक प्रादि से बचाने के लिए खाद्य-पदार्थों को मंच या पडछित्ती आदि पर, अथवा किसी ठंडे बर्तन या कोठी आदि में या भूमिगृह या तहखाने में रखते थे, इस प्रकार के विषम स्थान में कष्ट से पहुँच कर लाया हुया पाहार मालापहृत दोषयुक्त है। इसके तीन प्रकार हैं-(१) ऊर्ध्व-मालापहृत, (2) अधो-मालापहृत और (3) तिर्यग्-मालापहृत / यहाँ केवल ऊर्ध्वमालापहृत का उल्लेख है। पिछली सूत्रगाथाओं में अधोमालापहृत और तिर्यग्मालापहृत दोष की झांकी 'गंभीर झुसिरं चेव' इन दो पदों से दी है। प्रस्तुत गाथाओं में निःश्रेणी, फलक और पीठ ये तीन मंच और प्रासाद पर चढ़ने के साधन हैं और मंच आदि तीन प्रारोह्य स्थान हैं। मंचं : दो अर्थ-(१) शयन करने की खाट (मांचा) और (2) चार लट्ठों को बाँध कर बनाया हुया मचान, अथवा लटान या टांड। कोलं : तीन अर्थ-(१) खीला या खूटी, (2) खम्भा-स्तम्भ और (3) भूमि के साथ लगे हुए खम्भे पर रखा हुआ काष्ठ फलक / 75. (क) दसवेयालियं (मुनि नथमल जी) पृ. 241-242 (ख) दशव. (आचार्य श्री प्रात्माराम जी) पृ. 205 (ग) एतं भूमिघरादिसु अहेमालोहडं। मंचो सयणीयं चडणमंचिका वा / खोलो भूमिसमाकोट्टितं कठें / पासादो समालको घरबिसेसो। एताणि समणद्राए दाया चडेजा। ---अगस्त्य, चणि, पृ. 117 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org