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________________ 170] [दशवकालिकसूत्र 130. कुक्कुसगतेण हत्थेण दवीए भायणेण बा। देतियं पडिआइक्खे, न मे कप्पइ लारिसं // 48 / / 131. + उक्कुटुगतेण हत्थेण दम्वोए भायणेण वा। देतियं पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं // 49 // 132. असंसट्ठण हत्थेण दवीए भायणेण वा। दिज्जमाणं न इच्छेज्जा, पच्छाकम्म जहिं भवे / / 50 // 133. संस?ण हत्थेण दबीए भायणेण वा। दिज्जमाणं पडिच्छेज्जा, जं तत्थेसणियं भवे / / 51 / / * [106] वहाँ (पूर्वोक्त मर्यादित भूमिभाग में) खड़े हुए उस साधु (या साध्वी) को देने के लिए (अपने चौके में से कोई गृहस्थ) पान (पेय पदार्थ) और भोजन लाए तो उसमें से अकल्पनीय (साधुवर्ग के लिए अग्राह्य) को ग्रहण (करने की इच्छा) न करे, कल्पनीय ही ग्रहण करे // 27 / / [110] यदि (साधु या साध्वी के पास) भोजन लाती हुई गृहिणी (या गृहस्थ) उसे नीचे गिराए तो साधु उस (आहार) देती हुई महिला (या पुरुष) को निषेध कर दे कि इस प्रकार का पाहार मेरे लिए कल्पनीय (ग्रहण करने योग्य) नहीं है / / 28 // [111] प्राणी (द्वीन्द्रियादि जीव), बीज और हरियाली (हरी वनस्पति) को कुचलती (सम्मर्दन करती) हुई (आहार लाने वाली महिला दात्री) को असंयमकारिणी जान कर उस प्रकार का (सदोष आहार) उससे न ले // 26 // [112-113] इसी प्रकार एक बर्तन में से दूसरे बर्तन में डालकर (संहरण कर), (सचित्त वस्तु पर) रखकर, सचित्त वस्तु का स्पर्श करके (या रगड़ कर) तथा (पात्रस्थ सचित्त) जल को हिला कर, (सचित पानी में) अवगाहन कर, (सचित्त जल को) चालित कर श्रमण (को देने ) के लिए पान और भोजन लाए तो मुनि (उस ग्राहार) देती हुई महिला को निषेध कर दे कि इस प्रकार का आहार मेरे लिए ग्रहण करना शक्य (कल्प्य) नहीं है / / 30-31 / / पाठान्तर-- + उक्कि... / * इस प्रकार के चिन्ह से * इस प्रकार के चिह्न तक जो 19 गाथााँ हैं, टीकाकार के अनुसार ये दो गाथाएँ हैं, किन्तु टीकासम्मत इन दो गाथाओं में एव' और 'बोधव', ये जो दो पद हैं, वे संग्रहगाथाओं के सूचक हैं। जबकि चणिकार इन 19 गाथानों को मुलगाथाएँ मानते हैं। दो गाघाएं--- "एवं उदाउल्ले ससिणिद्ध ससरक्ने मटिठयाऊसे। हरिपाले हिंगुलए, मणोसिला अंजणे लोणे // 33 // 'गरुन-वनिय-से दिन, सोरठ्ठिय-पिठ-कुक्कूसकए य। उविकट ठमसंसठे संसठे चेव बोधब्बे // 33 // " (प्रतियों में प्रचलित पाट) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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