SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचम अध्ययन : पिण्डषणा] [161 गृह-प्रवेश-विधि-निषेध 99. पडिकुटुं कुलं न पविसे मामगं परिवज्जए। अचियत्तं कुलं न पविसे, चियत्तं पविसे कुलं // 17 // 100. साणी-पावारपिहियं अपणा नावपंगुरे।। कवाडं नो पणोल्लेज्जा प्रोग्गहंसि अजाइया // 18 // 101. गोयरग्गपविट्ठो उ वच्चमुत्तं न धारए। ओगासं फासुयं नच्चा, अणुनविय वोसिरे // 19 // 102. नीयदुवारं तमसं कोटुगं परिवज्जए। अचक्खुविसओ जत्थ, पाणा दुप्पडिलेहगा // 20 // 103. जत्थ पुफाई बीयाई, विप्पइण्णाई कोट्ठए / अहुणोवलित्तं ओल्लं दळूणं परिवज्जए // 21 // 104. एलगं दारगं साणं घच्छगं वा वि कोट्ठए। उल्लंघिया न पविसे विऊहिताण व संजए // 22 // [96] साधु-साध्वी निन्दित (प्रतिक्रुष्ट) कुल में (भिक्षा के लिए) प्रवेश न करे, (तथा) मामक गृह (गृह-स्वामी द्वारा गृहप्रवेश निषिद्ध हो, उस घर) को छोड़ दे। अप्रीतिकर कुल में प्रवेश न करे, किन्तु प्रीतिकर कुल में प्रवेश करे / / 17 / / [100] (साधु-साध्वी, गृहपति की) आज्ञा लिये (अवग्रह-याचना किये) बिना सन से बना हुआ पर्दा (चिक) तथा वस्त्रादि से ढंके हुए द्वार को स्वयं न खोले तथा कपाट को भी (गृह में प्रवेश करने के लिए) न उघाड़े / / 18 / / [101] गोचराग्न (भिक्षा) के लिए (गृहस्थ के घर में) प्रविष्ट होने वाला साधु मल-मूत्र की बाधा न रखे / यदि गोचरी के लिए गृहप्रवेश के समय मल-मूत्र की बाधा हो जाए तो) प्रासुक स्थान (अवकाश) देख (जान) कर, गृहस्थ की अनुज्ञा लेकर (मल-मूत्र का) उत्सर्ग करे / / 16 / / [102] जहाँ नेत्रों द्वारा अपने विषय को ग्रहण न कर सकने के कारण प्राणी भलीभांति देखे न जा सकें, ऐसे नीचे द्वार वाले घोर अन्धकारयुक्त कोठे (कमरे) को (गोचरी के लिए प्रवेश करना) वजित कर दे / / 20 // [103] जिस कोठे (कमरे) में (अथवा कोष्ठकद्वार पर) फूल, बीज आदि बिखरे हुए हों, तथा जो कोष्ठक (कमरा) तत्काल (ताजा) लीपा हुआ, एवं गीला देखे तो (उस कोठे में भी प्रवेश करना) छोड़ दे / / 21 // [104] संयमी मुनि, भेड़, बालक, कुत्ते या बछड़े को (बीच में बैठा हो तो) लांघ कर अथवा हटा कर कोठे (कमरे) में (भिक्षा के लिए) प्रवेश न करे / / 22 / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy