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________________ द्वितीय अध्ययन : श्रामण्य-पूर्वक] रूप काम को इच्छाकाम कहते हैं / इच्छा दो प्रकार की होती है- प्रशस्त और अप्रशस्त / धर्म और मोक्ष से सम्बन्धित इच्छा प्रशस्त है, जबकि युद्ध, कलह, राज्य या विनाश आदि की इच्छा अप्रशस्त है / मदनकाम कहते हैं—वेदोपयोग को। जैसे-स्त्री के द्वारा स्त्रीवेदोदय के कारण पुरुष की अभिलाषा करना, पुरुष द्वारा पुरुषवेदोदय के कारण स्त्री की अभिलाषा करना, तथा नपुंसकवेद के उदय के कारण नपुसक द्वारा स्त्री-पुरुष दोनों की अभिलाषा करना तथा विषयभोग में प्रवृत्ति करना मदनकाम है। नियुक्तिकार कहते हैं-'विषयसुख में आसक्त एवं कामराग में प्रतिबद्ध जीव को काम, धर्म से गिराते हैं। पण्डित लोग काम को एक प्रकार का रोग कहते हैं / जो जीव कामों की प्रार्थना (अभिलाषा) करते हैं, वे अवश्य ही रोगों की प्रार्थना करते हैं / 10 वास्तव में 'काम' यहाँ केवल मदनकाम से ही सम्बन्धित नहीं, अपितु इच्छाकाम और मदनकाम दोनों का द्योतक है। और श्रमणत्व पालन करने की शर्त के रूप में अप्रशस्त इच्छाकाम और मदनकाम, इन दोनों का समानरूप से निवारण करना आवश्यक है। काम का मूल और परिणाम-प्रस्तुत गाथा में काम को श्रामण्य का विरोधी क्यों बताया गया है, इसके उत्तर में शास्त्रकार गाथा के उत्तरार्द्ध में कहते हैं-"पए पए विसीयंतो संकप्पस्स वसं गो।" फलितार्थ यह है कि काम का मूल संकल्प है।+ अर्थात् संकल्प-विकल्पों से काम पैदा होता है / अगस्त्यसिंहचूणि में एक श्लोक उद्ध त किया गया है-- काम ! जानामि ते रूपं संकल्पात् किल जायसे / न त्वां संकल्पयिष्यामि, ततो मे न भविष्यसि / * अर्थात्-'हे काम ! मैं तुझे जानता हूँ। तू संकल्प से पैदा होता है। मैं तेरा संकल्प ही नहीं करूंगा. तो त मेरे मन में उत्पन्न नहीं हो सकेगा। तात्पर्य यह है—जब व्यक्ति काम का सकल्प करत है- अर्थात् मन में नाना प्रकार के कामभोगों या कामोत्तेजक मोहक पदार्थों की वासना, तृष्णा या 5. तत्रैषणमिच्छा, सैव चित्ताभिलाषरूपत्वात्कामा इतीच्छाकामा / ' हारि. वृत्ति, पत्र 85 6. इच्छा पसत्थमपसत्थिगा य""|---नियुक्ति गा. 163 7. तन्थ पसत्था इच्छा, जहा-धम्म कामयति, मोक्खं कामयति; अपसत्था इच्छा-रज्जं वा कामयति, जुद्ध वा कामयति, एवमादि इच्छाकामा ।—जिन. चणि पृ. 76 8. मयणमि वेय-उवयोगो। / -नियुक्ति माथा 163 9. (क) जहा इत्थी इथिवेदेण पुरिस पत्थेइ, पुरिसोवि इत्थि एवमादी। —जिन. चूणि पृ. 76 (ख) मदयतीति मदन:-चित्रो मोहोदयः स एव कामप्रवृत्ति हेतुत्वात् मदनकामा।" ---हारि. वत्ति . 85-86 11. विसयसुहेसु पसत्तं, अबहजणं कामरागपडिबद्ध। उक्कामयति जीव, धम्माओ, तेण ते कामा। अन्नं पि से नाम कामा रोगत्ति पंडिया बिति / कामे पत्थेमाणो, रोगे पत्थेइ खलु जंतू / / -नियुक्ति गाथा 164-165 + संकप्पोत्ति वा छंदोत्ति वा कामझवसायो। -जिनदास, च णि पृ. 78 * दशवं. अगस्त्यसिंह चूणि, पृ. 41 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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