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________________ सूत्रांक विषय पृष्ठांक 399.400 आशय, नौका विहार का विवेकज्ञान, प्रवचन-प्रभावना व नौकाविहार, उत्सर्ग-अपवाद विवेक, अन्य वाहन और नौकाप्रयोग की तुलना, गीतार्थ का अधिकार, प्रायश्चित्त / 33-73 वस्त्र सम्बन्धी विभिन्न प्रायश्चित्त १४वें उद्देशक की भलावण एवं सूत्रसंख्या विचारणा / उद्देशक का सूत्रक्रमांकयुक्त सारांश - किन-किन सूत्रों का विषय अन्य आगमों में है या नहीं है उद्देशक 19 400 400-401 402-405 औषध सम्बन्धी क्रीतादि दोषों का प्रायश्चित्त प्रागमों में "वियड" शब्द का प्रयोग विभिन्न अर्थों में, प्रासंगिक अर्थ-निष्कर्ष, सूत्रों के आशय, "वियड" का "भद्य" परक अर्थ आगमसम्मत नहीं, औषध सेवन-असेवन का क्रमिक विवेक, औषध की मात्रा का विवेक, विहार में औषध कुटना पीसना आदि क्रियाएं / 405-407 चार संध्याकाल में स्वाध्याय करने का प्रायश्चित्त चार संध्या का परिचय, अस्वाध्याय के कारण, संध्याओं का समय निर्धारण, प्रायश्चित्त / 9-10 407-409 उत्काल में कालिकश्रुत के उच्चारण का प्रायश्चित्त सूत्राशय का स्पष्टीकरण, कालिक उत्कालिक के स्वरूप की विचारणा एवं सूची, कुल प्रागामों की संख्या विचारणा, आगम की परिभाषा, नन्दीसूत्र में मान्य आगम, उसके रचनाकारों की विचारणा, आगम मानने का सही निष्कर्ष, सूत्रोक्त प्रायश्चित्त का तात्पर्य / 410-412 11-12 महा-महोत्सवों में स्वाध्याय करने का प्रायश्चित्त आठ दिन और उनकी विचारणा, देवों से सम्बन्ध, स्वाध्याय निषेध का कारण, "आषाढी प्रतिपदा" आदि शब्दों का सही अर्थ एवं अमांत मान्यता की आगम से विचारणा, 10 दिन मानने की परम्परा भ्रम से, सूत्रोक्त प्रायश्चित्त / 412-414 स्वाध्यायकाल में स्वाध्याय नहीं करने का प्रायश्चित्त सुत्राशय, स्वाध्याय न करने से हानि, स्वाध्याय करने के लाभ, स्वाध्याय के लिए प्रेरक आगमवाक्यसंग्रह, स्वाध्याय सम्बन्धी दिनचर्या, सूत्र कंठस्थ करना और याद रखना आवश्यक, भिक्षु का विवेकज्ञान / 414-418 अस्वाध्याय के समय स्वाध्याय करने का प्रायश्चित्त अस्वाध्याय सम्बन्धी आगमस्थल, कुल 32 अस्वाध्याय, 20 अस्वाध्याय स्थान की व्याख्या और उनका कालमान भाष्य के आधार से, इन प्रस्वाध्यायों सम्बन्धी विभिन्न दोष, अस्वा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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