________________ बीसवां उद्देशक] [453 41. चार मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणमार यदि प्रायश्चित्त-वहनकाल के प्रारम्भ, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त पाता है / जिसे संयुक्त करने से साढ़े चार मास की प्रस्थापना होती है। 42. साढ़े चार मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहनकाल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त पाता है / जिसे संयुक्त करने से पांच मास की प्रस्थापना होती है / 43. पांच मास प्रायश्चित वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहनकाल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त पाता है। जिसे संयुक्त करने से साढ़े पांच मास की प्रस्थापना होती है। 44. साढ़े पांच मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहनकाल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष सेवन करके अालोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त पाता है / जिसे संयुक्त करने से छः मास की प्रस्थापना होती है। विवेचन-इनका विवेचन सूत्र 25 से 29 के समान समझना चाहिए अन्तर केवल यह है कि दो मास के प्रायश्चित्त स्थान की प्रस्थापिता आरोषणा के स्थान पर यहाँ एक मास के प्रायश्चित स्थान की प्रस्थापित प्रारोपणा समझना चाहिए। मासिक और दो मासिक प्रायश्चित्त की प्रस्थापिता प्रारोपणा एवं वृद्धि 45. दो मासियं परिहारहाणं पटुबिए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा-अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअटें सहेउं सकारणं अहीणमइरित्तं तेण परं अड्डाइज्जा मासा / 46. अडाइज्ज-मासियं परिहारट्ठाणं पटुविए अणगारे अंतरा दो मासियं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा-अहावरा वीसइराइया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअट्ठ सहेउं सकारणं अहीणमइरित्तं, तेण परं संपचराइया तिण्णिमासा। 47. संपचराइय-तेमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहाणटाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा-अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमइरित्तं, तेण परं सवीसइराइया तिण्णि मासा / 48. सवीसइराइय-तेमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा दो मासियं परिहारट्ठाणं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org