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________________ 450] [निशीयसूत्र आलोएज्जा-अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिममाघसाणे सअटुं सहेडं सकारणं अहीणमहरितं तेण परं दिवड्डो मासो। 32. चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं पटुविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा-~-अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअटुं सहेउं सकारणं अहीणमइरित्तं तेण पर दिवड्डो मासो। __33. तेमासियं परिहारट्ठाणं पट्टबिए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा--अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअट्ठ सहेउं सकारणं अहीणमहरितं तेण परं दिवड्डो मासो। 34. दो मासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा--अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमझावसाणे सअटुं सहेउं सकारणं अहीणमइरित्तं तेण परं दिवड्डो मासो। 35. मासियं परिहारहाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा--अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअट्ठ सहेउं सकारणं अहीणमइरित्तं तेण परं दिवड्डो मासो। 30. छः मासिक प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त अाता है उसके बाद पुनः दोष सेवन कर ले तो डेढ मास का प्रायश्चित्त प्राता है / 31. पंच मासिक प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त आता है / उसके बाद पुनः दोष सेवन कर ले तो डेढ मास का प्रायश्चित्त पाता है। 32. चातुर्मासिक प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त पाता है। उसके बाद पुनः दोष सेवन कर ले तो डेढ मास का प्रायश्चित्त आता है। 33. तीन मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त पाता है। उसके बाद पनः दोष सेवन कर ले तो डेढ मास का प्रायश्चित्त आता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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