________________ [निशीषसूत्र आलोएज्जा-अहावरा वीसइराइया आरोवणा आदिमझावसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमरित्तं तेण परं सवीसइराइया दो मासा। 23. दो मासियं परिहारट्ठाणं पढविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा-अहावरा वीसइराइया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअटें सहेउं सकारणं अहीणमहरितं तेणं परं सवीसइराइया दो मासा। 24. मासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा-अहावरा वीसइराइया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअर्से सहेउं सकारणं अहोणमइरित्तं तेण परं सवोसइराइया दो मासा। 19. छः मासिक प्रायश्चित्त वहन करनेवाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से दो मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके पालोचना करे तो उसे न कम न अधिक बीस रात्रि की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त पाता है, उसके बाद पुनः दोष सेवन करले तो दो मास और बीस रात्रि का प्रायश्चित्त आता है / 20. पंचमासिक प्रायश्चित्त वहन करनेवाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से दो मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके ग्रालोचना करे तो उसे न कम न अधिक बीस रात्रि की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त पाता है, उसके बाद पुनः दोष सेवन करले तो उसे दो मास और बोस रात्रि का प्रायश्चित्त पाता है। 21. चातुर्मासिक प्रायश्चित्त वहन करनेवाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से दो मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके पालोचना करे तो उसे न कम न अधिक बीस रात्रि की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त आता है, उसके बाद पुन: दोष सेवन करले तो दो मास और बीस रात्रि का प्रायश्चित प्राता है। 22. त्रैमासिक प्रायश्चित्त वहन करनेवाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन हेतु या कारण से दो मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक बीस रात्रि की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त प्राता है, उसके बाद पुनः दोष सेवन करले तो दो मास और बीस रात्रि का प्रायश्चित्त पाता है / 23. दो मासिक प्रायश्चित्त वहन करनेवाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतू या कारण से दो मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक बोस रात्रि की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त पाता है, उसके बाद पुनः दोष सेवन कर ले तो दो मास और बीस रात्रि का प्रायश्चित्त पाता है / 24. मासिक प्रायश्चित्त वहन करनेवाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन हेतु या कारण से दो मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org