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________________ 13 उन्नीसवाँ उद्देशक] [429 उन्नीसवें उद्देशक का सारांशसूत्र 1-7 औषध के लिए क्रीत आदि दोष लगाना, विशिष्ट औषध की तीन मात्रा (खुराक) से अधिक लाना, औषध को विहार में साथ रखना तथा औषध के परिकर्म सम्बन्धी दोषों का सेवन करगा, चार संध्या में स्वाध्याय करना, 9-10 कालिकसूत्र की 9 गाथा एवं दृष्टिवाद की 21 गाथाओं से ज्यादा पाठ का अस्वाध्याय काल में (अर्थात् उत्काल में) उच्चारण करना, 11-12 चार महामहोत्सव एवं उनके बाद की चार महा प्रतिपदा के दिन स्वाध्याय करना, कालिकसूत्र का स्वाध्याय करने के चार प्रहरों को स्वाध्याय किए बिना ही व्यतीत करना, 32 प्रकार के अस्वाध्याय के समय स्वाध्याय करना, अपने शारीरिक अस्वाध्याय के समय स्वाध्याय करना, सूत्रों की वाचना आगमोक्त क्रम से न देना, आचारांग सूत्र की वाचना पूर्ण किए बिना छेदसूत्र या दृष्टिवाद की वाचना देना, 18-21 अपात्र को वाचना देना और पात्र को न देना, अव्यक्त को वाचना देना और व्यक्त को वाचना न देना। समान योग्यता वालों को वाचना देने में पक्षपात करना, 23 प्राचार्य उपाध्याय द्वारा वाचना दिए बिना स्वयं वाचना ग्रहण करना, 24-25 मिथ्यात्व भावित गृहस्थ एवं अन्यतोथिकों को वाचना देना एवं उनसे लेना, 26-35 पार्श्वस्थादि को वाचना देना एवं उनसे लेना, इत्यादि प्रवृत्तियों का लघुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है / उपसंहार-इस उद्देशक के प्रारम्भ में औषध विषयक कथन किया गया है। शेष सभी सूत्रों में स्वाध्याय एवं अध्ययन-अध्यापन सम्बन्धी विषयों का कथन है। एक साथ इतनी स्पष्टता के साथ किए गए प्रायश्चित्त विधान से यहां पर श्रुत स्वाध्याय एवं अध्यापन सम्बन्धी पूर्ण विधियों का क्रमिक एवं स्पष्ट निर्देश किया गया है / इस प्रकार कुल दो विषयों में उद्देशक पूर्ण हो जाता है / इसमें स्वाध्याय सम्बन्धी अन्य आगमों में उक्त या अनुक्त सामग्री का एक साथ अनुपम संग्रह हुआ है, यह इस उद्देशक की विशेषता है। इस उद्देशक के 12 सूत्रों के विषयों का कथन निम्न आगमों में है, यथासूत्र 6 ___ ग्लान के लिए औषध को तीन दत्ति से अधिक लेने का निषेध -ठाणं अ. 3 चार संध्या में स्वाध्याय नहीं करना -ठाणं अ. 4 चार प्रतिपदा में स्वाध्याय नहीं करना, -ठाणं. अ. 4 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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