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________________ उन्नीसवाँ उद्देशक] विवेचन-दिन में तथा रात्रि में स्वाध्याय करना आवश्यक होते हुए भी आगमों में जब जहाँ स्वाध्याय करने का निषेध किया गया है उस अस्वाध्यायकाल का सदा ध्यान रखना चाहिए। निम्न आगमों में अस्वाध्याय स्थानों का वर्णन है 1. ठाणांग सूत्र अ. 4 में-४ प्रतिपदाओं और 4 संध्याओं में स्वाध्याय करने का निषेध किया है। 2. ठाणांग सूत्र अ. 10 में-१० आकाशीय अस्वाध्याय और 10 औदारिक अस्वाध्याय कहे हैं। 3. यहाँ प्रस्तुत उद्देशक में 4 महा महोत्सव 4 प्रतिपदा और 4 संध्या में स्वाध्याय करने का प्रायश्चित्त कहा है। 4. व्यव. उ. 7 में स्वशरीर सम्बन्धी अस्वाध्याय करने का निषेध किया है। इन सभी निषेध स्थानों का संग्रह करने से कुल 32 अस्वाध्याय स्थान होते हैं / यथाआकाश सम्बन्धी औदारिक सम्बन्धी महोत्सव एवं प्रतिपदा सम्बन्धी संध्याकाल सम्बन्धी कुल 32 इनमें से 12 अस्वाध्यायों का विवेचन पूर्व सूत्रों में किया जा चुका है / शेष 20 अस्वाध्याय इस प्रकार हैं 1. उल्कापात–तारे का टूटना अर्थात् स्थानान्तरित होना / तारा विमान के तिर्यक् गमन करने पर या देव के विकुर्वणा आदि करने पर आकाश में तारा टूटने जैसा दृश्य होता है। यह कभी लम्बी रेखायुक्त गिरते हुए दिखता है, कभी प्रकाशयुक्त गिरते हुए दिखता है। सामान्यतः आकाश में तारे टूटने जैसा क्रम प्रायः सदा बना रहता है, अत: विशिष्ट प्रकाश या रेखायुक्त हो तो अस्वाध्याय समझना चाहिए / इसका एक प्रहर तक अस्वाध्याय होता है। 2. दिग्दाह-पुद्गल परिणमन से एक या अनेक दिशाओं में कोई महानगर जलने जैसी अवस्था दिखाई दे उसे दिग्दाह समझना चाहिए / यह भूमि से कुछ ऊपर दिखाई देता है / इसका एक प्रहर का अस्वाध्याय होता है। 3. गर्जन-बादलों की ध्वनि / इसका दो प्रहर का अस्वाध्याय होता है। किन्तु पार्टानक्षत्र से स्वातिनक्षत्र तक के वर्षा-नक्षत्रों में अस्वाध्याय नहीं गिना जाता। 4. विद्युत्-बिजली का चमकना / इसका एक प्रहर का अस्वाध्याय होता है। किन्तु उपर्युक्त वर्षा के नक्षत्रों में अस्वाध्याय नहीं होता है / 5. निर्घात-दारुण-[घोर] ध्वनि के साथ बिजली का चमकना / इसे बिजली कड़कना या बिजली गिरना भी कहा जाता है / इसका आठ प्रहर का अस्वाध्याय होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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