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________________ उन्नीसवाँ अध्ययन [403 6. जो भिक्षु औषध साथ में लेकर ग्रामानुग्राम विहार करता है या विहार करने वाले का अनुमोदन करता है। 7. जो भिक्षु औषध को स्वयं गलाता है, गलवाता है या गला कर देने वाले से ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है।) विवेचन-प्रस्तुत सूत्रों में प्रयुक्त “वियड" शब्द का प्रयोग अनेक प्रागमों में अनेक अर्थों में हुया है / यथा 1. बृहत्कल्प सूत्र उद्देशक 2, सु. 4-7 में--शीतल पानी, गर्म पानी, सुरा और सौवीर के विशेषण रूप में प्रयोग हुआ है, यथा 1. सीओदग वियड कुभे वा, 2. उसिणोदग वियड कुभे वा, 3. सुरा वियड कुभे वा, 4. सोवीर वियड कुंभे वा, इत्यादि / 2. बृहत्कल्प सूत्र उद्देशक 2, सु. 11-12 में-खुले गृह के अर्थ में "वियड" शब्द का प्रयोग हुग्रा है। निम्रन्थ को ऐसे खुले गृह में ठहरने का विधान किया गया है और निर्ग्रन्थी को वहाँ ठहरने का निषेध किया गया है। 3. दशाश्रुत स्कन्ध को दशा 6 में श्रावक को छटो प्रतिमा में दिवस भोजन के अर्थ में "वियडभोजी" शब्द प्रयुक्त है। 4. प्रज्ञापना पद 9 में-जीवों के उत्पन्न होने के स्थान रूप एक प्रकार की "योनि" के अर्थ में "वियड" शब्द प्रयुक्त है, यथा--"वियडा जोणी" / 5. ठाणांग सूत्र अ. 3 में ग्लान भिक्षु के लिए किसी एक प्रकार की औषध के अर्थ में "वियड" शब्द का प्रयोग है। वहाँ ग्लान के लिए तीन प्रकार की "वियडदत्ति" ग्रहण करने का विधान है। 6. दशा. द. 8 में गोचरी गए साधु के मार्ग में कहीं वर्षा ना जाने पर वहीं सुरक्षित स्थान में बैठकर आहार-पानी के सेवन कर लेने के विधान में "वियडगं भोच्चा पेच्चा" ऐसा पाठ है / 7. प्राचा. श्र. 1, अ. 9, उ. 1, गा. 18 में भगवान महावीर स्वामी ने किसी भी प्रकार का पाप कर्म न करते हुए, प्राधाकर्म दोष का सेवन न करते हुए "अचित्त भोजन किया था" इस अर्थ में "वियड" शब्द का प्रयोग है यथा-तं अकुवं वियर्ड भुजित्था / यहाँ स्वतन्त्र "वियड" शब्द आहार का बोधक है। __ इस प्रकार आगमों में जहाँ "वियड" शब्द अचित्त गर्म पानी का, अचित्त शीतल पानी का विशेषण है वहीं सुरा-सौवीर आदि "मद्य" का भी विशेषण है / औषध, आहार-पानी, दिवस भोजन तथा शय्या एवं योनि अर्थ में भी है। प्रस्तुत प्रकरण में ठाणांग सूत्र अ. 3 में कहे गए विधान से सम्बन्धित प्रायश्चित्त का विषय है। दोनों स्थलों में "वियड" ग्रहण करने का सम्बन्ध बीमार के लिए किया गया है अतः यहाँ औषध रूप अनेक पदार्थों को ही "वियड" शब्द से समझना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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