________________ 382] [निशीथसूत्र है तथा न लेने योग्य पानी के आगमपाठ में भी अन्य ऐसे न लेने योग्य पानी लेने का निषेध है / अतः कल्पनीय अकल्पनीय पानी अन्य अनेक हो सकते हैं, यह स्पष्ट है। पानी शस्त्र-परिणमन होने पर भी तत्काल अचित्त नहीं होता है, अतः वह लेने योग्य नहीं होता है / वही पानी कुछ समय बाद अचित्त होने पर लेने योग्य हो जाता है। फल आदि धोए हुए अचित्त पानी में यदि बीज, गुठली आदि हो तो ऐसा पानी छान करके दे, तो भी वह लेने योग्य नहीं है / धोवण-पानो सूचक आगमस्थल इस प्रकार हैं 1. दशवैकालिक अ० 5, उ० 1, गा० 106 (75) में तीन प्रकार के धोवण-पानी लेने योग्य कहे हैं / इनमें दो प्रकार के धोवण-पानी आचारांग श्रु० 2, अ० 1, उ० 7, सू० 369 के अनुसार ही कहे गए हैं और 'वार-धोयणं' अधिक है / 2. उत्तराध्ययन सूत्र अ० 15, गा० 13 में तीन प्रकार के धोवण कहे गए हैं / इन तीनों का कथन प्रा० श्रु० 2, अ० 1, उ०७, सू० 369-370 में है / 3. प्राचारांग श्रु० 2, अ० 1, उ० 7, सू० 369-370 में अल्पकाल का धोवण लेने का निषेध है, अधिक काल का बना हा धोवन लेने का विधान है तथा गहस्थ के कहने पर स्वत: लेने का भी विधान है। 4. प्रा० श्रु० 2, अ० 1, उ० 8, सू० 373 में अनेक प्रकार के धोवण-पानी का कथन है / इनमें बीज, गुठली आदि हो तो ऐसे पानी को छान करके देने पर भी लेने का निषेध है। 5. ठाणं० अ० 3, उ० 3, सू० 188 में चउत्थ, छट्ट, अट्ठम तप में 3-3 प्रकार के ग्राह्य पानी का विधान है। 6. दशवकालिक अ०८, गा० 6 में उष्णोदक ग्रहण करने का विधान है। प्राचारांग व निशीथ में वर्णित 'सुद्ध वियड' उष्णोदक से भिन्न है, क्योंकि वहाँ तत्काल बने शुद्ध वियड ग्रहण करने का निषेध एवं प्रायश्चित्त कहा गया है / अतः उसे अचित्त शुद्ध शीतल जल ही समझना चाहिये। आगमों में वर्णित ग्राह्य अग्राह्य धोवण पानी के संक्षिप्त अर्थ इस प्रकार हैंग्यारह प्रकार के ग्राह्य धोवण-पानी-- 7. उत्स्वेदिम-आटे के लिप्त हाथ या बर्तन का धोवण, 2. संस्वेदिमउबाले हुए तिल, पत्र-शाक आदि का धोया हुआ जल, 3. तन्दुलोदक-चावलों का धोवण, 4. तिलोदक-तिलों का धोवण, 5. तुषोदक-भूसी का धोवण या तुष युक्त धान्यों के तुष निकालने से बना धोवण, 6. जवोदक--जौ का धोवन, 7. पायाम-अवश्रावण-उबाले हुए पदार्थों का पानी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org