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________________ पन्द्रहवां उद्देशक] [333 सामायिक के समय भी वाणिज्य एवं खेती आदि के सभी सावध कार्य उसके स्वामित्व में ही होते रहते हैं / अतः किसी भी गृहस्थ को अशनादि देने पर सूत्रोक्त प्रायश्चित्त आता है। आहार देने वाला गृहस्थ -संयमसाधना में सहयोग करने के लिये ही भिक्षु को भावपूर्वक आहार देता है / इसलिए वह आहार अन्य किसी को देने पर जिनाज्ञा एवं गृहस्थ की आज्ञा न होने से तीसरा महावत दूषित होता है। आहार दाता गृहस्थ को यह ज्ञात हो जाए कि 'मेरा दिया हुआ आहार साधु ने अमुक को दिया है तो उसकी साधुओं के प्रति अश्रद्धा होती है और दान भावना में भी कमी आ जाती है / कभी दाता की या भिक्षु की असावधानी से सचित्त आहार-पानी या अकल्पनीय अाहारादि पदार्थ ग्रहण कर लिया गया हो तो शीघ्र ही उसी गृहस्थ को पुनः दे देना चाहिए। ऐसा विधान आचा. श्रु. 2 अ. 1 उ. 10 तथा अ. 6 उ. 2 में है। पार्श्वस्थ प्रादि के साथ प्राहार का देन-लेन करने का प्रायश्चित्त 77. जे भिक्खू पासत्थस्स असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा देइ, देतं वा साइज्ज। 78. जे भिक्खू पासत्थस्स असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा पडिच्छइ, पडिच्छंतं वा साइज्ज। 79. जे भिक्खू ओसण्णस्स असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा देइ, वेंतं वा साइज्ज। 80. जे भिक्खू ओसण्णस्स असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइज्जई। 81. जे भिक्खू कुसीलस्स असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा देइ, देतं वा साइज्जइ। 62. जे भिक्खू कुसोलस्स असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा पडिच्छइ, पडिच्छतं वा साइज्जह। 83. जे भिक्खू संसत्तस्स असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा देइ, दतं वा साइज्जइ। 84. जे भिक्खू संसत्तस्स असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा पडिच्छइ, पडिच्छतं वा साइज्जइ। 85. जे भिक्खू णितियस्स असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा देइ, देंतं वा साइज्जइ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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