________________ 318] [निशीयसूत्र 14. जो भिक्षु "मुझे नया पात्र नहीं मिला है" ऐसा सोचकर पात्र को अल्प या बहुत लोध्र से यावत् वर्ण से एक बार या बार-बार लेप करता है या लेप करने वाले का अनुमोदन करता है / 15. जो भिक्षु "मुझे नया पात्र नहीं मिला है" ऐसा सोचकर पात्र के रात रखे हुए लोध्र यावत् वर्ण से एक बार या बार-बार लेप करता है या लेप करने वाले का अनुमोदन करता है। 16. जो भिक्षु "मुझे दुर्गंध वाला पात्र मिला है" ऐसा सोचकर पात्र को अल्प या बहुत अचित्त शीत जल से या अचित्त उष्ण जल से एक बार या बार-बार धोता है या धोने वाले का अनुमोदन करता है। 17. जो भिक्षु "मुझे दुर्गन्ध वाला पात्र मिला है" ऐसा सोचकर पात्र को रात रखे हुए अचित्त शीत जल से या अचित्त उष्ण जल से एक बार या बार-बार धोता है या धोने वाले का अनुमोदन करता है। 18. जो भिक्षु "मुझे दुर्गन्ध वाला पात्र मिला है" ऐसा सोचकर पात्र को अल्पां या बहुत लोध्र से यावत् वर्ण से एक बार या बार-बार लेप करता है या लेप करने वाले का अनुमोदन करता है। 19. जो भिक्षु "मुझे दुर्गन्ध वाला पात्र मिला है" ऐसा सोचकर पात्र को रात रखे हुए लोध्र यावत् वर्ण से एक बार या बार-बार लेप करता है या लेप करने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे लघुचातुर्मासिक प्रायश्चित आता है / ) विवेचन-भिक्षु पात्र की गवेषणा करते समय ऐसा ही पात्र ले कि उसमें किसी प्रकार का परिकर्म न करना पड़े। यदि गवेषणा करते हुए भी बहुत पुराना पात्र मिले या कोई अमनोज्ञ गंध वाला पात्र मिले तो उसे धोने या सुगन्धित करने की प्रवृत्ति न करे / यहाँ पहले और तीसरे सूत्र में अल्प या अधिक जल से धोने का या कल्कादि से सुगंधित करने का प्रायश्चित्त कहा है। उसके बाद दूसरे और चौथे सूत्र में बहुदैवसिक जल से धोने का या कल्कादि से सुगंधित करने का प्रायश्चित्त कहा है। तात्पर्य यह है कि यदि संयम या स्वास्थ्य के लिये किंचित् भी प्रतिकूल न हो तो अल्प या अधिक जल से या कल्कादि से न धोए, न सुगंधित करे / किन्तु आवश्यक होने पर धोना पड़े तो अनेक दिनों तक न धोए तथा रात्रि में उन धोने और सुगंधित करने के पदार्थों को पात्र में न रखे / भाष्यकार ने कहा है कि यदि वह पात्र विषैले पदार्थ या मंत्र से प्रभावित हो अथवा मद्य आदि की गन्ध युक्त हो तो अपवाद रूप में अनेक दिनों तक कल्कादि या जल रखकर उसे शुद्ध किया जा सकता है / अथवा कभी क्षार द्रव्यों से भी शुद्ध किया जा सकता है। इन सूत्रों में अकारण धोने आदि का तथा कारण होने पर रात में बासी रखकर धोने आदि का प्रायश्चित्त कहा है। यहाँ कुल आठ सूत्र हैं-चार पुराने पात्रों के और चार दुर्गन्ध युक्त पात्रों के / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org