SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 398
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 298] [निशीथसूत्र 63. जे भिक्खू संपसारियं पसंसइ, पसंसंतं वा साइज्जइ। 46. जो भिक्षु पार्श्वस्थ को वन्दन करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है / 47. जो भिक्षु पार्श्वस्थ की प्रशंसा करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। 48. जो भिक्षु कुशील को वन्दन करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है / 49. जो भिक्षु कुशील की प्रशंसा करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। 50. जो भिक्षु अवसन्न को वन्दन करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। 51. जो भिक्षु अवसन्न की प्रशंसा करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है / 52. जो भिक्षु संसक्त को वन्दन करता है या करने वाला का अनुमोदन करता है। 53. जो भिक्षु संसक्त की प्रशंसा करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। 54. जो भिक्षु नित्यक को वन्दन करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। 55. जो भिक्षु नित्यक को प्रशंसा करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। _____56. जो भिक्षु विकथा करने वाले को वन्दन करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। 57. जो भिक्षु विकथा करने वाले की प्रशंसा करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। 58. जो भिक्षु नृत्यादि देखने वाले को वन्दन करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। 59. जो भिक्षु नृत्यादि देखने वाले की प्रशंसा करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। 60. जो भिक्षु उपकरण आदि पर अत्यधिक ममत्व रखने वाले को बदन्न करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। 61. जो भिक्षु उपकरण अादि पर अत्यधिक ममत्व रखने वाले की प्रशंसा करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। 62. जो भिक्षु असंयतों के प्रारम्भ-कार्यों का निर्देशन करने वाले को वन्दन करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy