________________ बारहवां उद्देशक] [283 अर्थ-पांच नदियों के कथन से शेष बड़ी नदियाँ भी सूचित की गई हैं। प्राचीन काल के विचरण क्षेत्र में ये पांच प्रमुख नदियां कभी नहीं सूखती थीं और प्रसिद्ध थीं। अतः सूत्र में इनका नाम और संख्या का निर्देश है। उपलक्षण से जिस समय जो बड़ी नदियां हों, उन्हें भी समझ लेना चाहिए / महण्णव-महासलिला 'बहु उदको'–अधिक जल वाली। महाणईप्रो-प्रधान नदियां / बृहत्कल्पसूत्र उद्देशक 4 में तथा आचा. श्रु. 2 अ. 3 उ. 2 में पैरों से चल कर नदी पार करने की विधि बताई गई है तथा प्राचा. श्रु. 2 अ. 3 उ. 1 व 2 में नावा से नदी पार करने की विधि और उपसर्ग आने पर की जाने वाली विधि का विस्तृत वर्णन है। प्रस्तुत सूत्र में निर्दिष्ट पांच नदियां भी कभी कहीं अल्प उदक वाली हो सकती हैं / बृहत्कल्पसूत्र उद्देशक 4 में कुणाला नगरी के समीप ऐरावती नदी में अल्प पानी होना बताया है। भिक्षु को उत्सर्ग विधान के अनुसार जल का स्पर्श करना भी नहीं कल्पता है। किन्तु विहार में नदी पार करना पड़े तो यह आपवादिक विधान है। बृहत्कल्पभाष्य में तथा निशीथभाष्य में षय के अपवाद और विवेक का विस्तत विवेचन किया गया है। स्थलमार्ग में कितना चक्कर हो तो कितने जल मार्ग से जाना, उसमें भी पृथ्वीकाय, हरी घास, फूलन आदि के आधार पर अनेक विकल्प किये हैं। प्रायश्चित्त में भी अनेक विकल्प दिये हैं / नावा कुभादि से तैरने की विधि भी बताई गई है। इसके लिये भाष्य का अध्ययन करना चाहिये। बारहवें उद्देशक का सारांश 1-2 बस प्राणियों को बांधना या खोलना। बार-बार प्रत्याख्यान भंग करना। प्रत्येककाय मिश्रित पाहार करना / सरोम चर्म का उपयोग करना। गृहस्थ के वस्त्राच्छादित तृणपीढ आदि पर बैठना / साध्वी की चादर गृहस्थ से सिलवाना। पृथ्वी आदि पाँच स्थावरकायिक जीवों की किंचित् भी विराधना करना / र चढ़ना। 10-13 गृहस्थ के बर्तनों में खाना, गृहस्थ के वस्त्र पहनना, गृहस्थ की शय्या आदि पर बैठना, गृहस्थ को चिकित्सा करना। 14 पूर्वकर्मदोष युक्त आहार ग्रहण करना / 15 उदकभाजन (गृहस्थ के कच्चे पानी लेने-निकालने के बर्तन) से आहार ग्रहण करना। 16-30 दर्शनीय स्थलों को देखने जाना / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org