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________________ नवम उद्देशक] [193 करने का दोष इत्यादि दोषों की सम्भावना रहती है / राजा की तरफ से इन व्यक्तियों को दिये जाने के बाद और उनके स्वीकार कर लेने पर वे व्यक्ति यदि अजुगुप्सित-अहित कुल के हों तो एषणा समिति पूर्वक उनसे आहार ग्रहण करने में कोई प्रायश्चित्त नहीं पाता है। ___ राजा के यहां इनके लिये बनाया गया हो या इनके लिये विभक्त करके रखा गया हो तब तक अकल्पनीय होता है / उसी पाहार को ग्रहण करने का उपर्युक्त सूत्रों में प्रायश्चित्त कहा गया है / सूत्र 21 - “खत्तियाणं आदि" क्षतात् त्रायते इति क्षत्रिया आरक्षका इत्यर्थः / अधियोराया / कुत्सितो राया कुराया अहवा पच्चंतनिवो कुराया। "राजवंशे स्थिताः राज्ञो मातुल-भागिनेयादयः रायवंसदिया।" जे एतेसि चेव प्रेष्या-प्रेसिता-दंडपासिकप्रभृतयः / -नि. चूणि व प्राचा. श्रु. 2, अ. 1, उ. 3 सूत्र 22- इस सूत्र में “वेलंबगाण" से उछल-कूद खेल प्रादि करने वाले ऐसा अर्थ हो सकता है तथापि लिपिदोष के कारण यथार्थ निर्णय न होने से और अनेक प्रतियों में मिलने से 'खेलयाण वा" = अनेक प्रकार के खेल करने वाले" ऐसा अलग पाठ व उसका अर्थ रखा है। ___ इस सूत्र में "छत्ताणुयाण वा" शब्द भी ज्यादा मिलता है जो लिपि-प्रमाद से आया हुआ प्रतीत होता है / चूर्णिकार के सामने भी यह पाठ नहीं रहा होगा, ऐसा लगता है तथा सूत्र 25 में इसका अलग कथन है / अतः यहाँ आवश्यक न होने से नहीं रखा गया है। सूत्र २३---"पोषक"-आहार, औषध, पानी संबंधी ध्यान रखने वाले, शारीरिक सेवा, स्नान, मर्दन आदि करने वाले, निवासस्थान की शुद्धि का ध्यान रखने वाले अर्थात् पूर्ण संरक्षण करने वाले 'पोषक' कहलाते हैं। अनेक प्रतियों में 'मक्कडपोसयाण' नहीं है। किन्तु आचारांग श्रु. 2, अ. 10 में कुक्कुड व तीतर शब्द के बीच में मक्कड शब्द कुछ प्रतियों में है अतः यहाँ भी सूत्र में "मक्कड" शब्द रखा है। "बृहत्तरा रक्तपादा वट्टा, अल्पतरा लावगा" अल्प लाल पांव वाले "लावक" होते हैं। अधिक लाल पांव वाले "बत्तक" कहलाते हैं / सूत्र २४–इस सूत्र के स्थान पर कई प्रतियों में तीन और कहीं चार सूत्र भी मिलते हैं। "चूणि और भाष्य में" इमं सुत्तवक्खाणं"आसाण य हत्थीण य, दमगा जे पढमताए विणियंति / परियट्ट-मेंठ पच्छा, आरोहा जुद्धकालम्मि // 2601 // " "जे पढमं विणयं गाहेंति ते दमगा, जे जणा जोगासणेहि वावरं वा वहेंति ते मेंठा, जुद्ध काले जे आरहंति ते आरोहा // 2601 // " पूर्व सूत्र में अश्व व हस्ती आदि 21 पशू-पक्षियों के पोषण करने वालों का कथन है। इस सूत्र में अश्व व हस्ती इन दो को शिक्षित करने वाले, घुमाने-फिराने वाले, आसन वस्त्र प्राभूषण से सुसज्जित करने बाले तथा युद्ध में इनकी सवारी करने वालों का कथन है, ऐसा गाथा से ज्ञात होता है / चूर्णि में “परियट्ट" शब्द की व्याख्या नहीं है। इसी कारण से पृथक्-पृथक सूत्र करने पर तीन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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