________________ सातवाँ उद्देशक [159 बीज, हरित माला की व्याख्या नहीं है तथा वराटिका (कौडी) शब्द की व्याख्या अधिक है / वह शब्द किसी भी प्रति में उपलब्ध नहीं है। इन तीन सूत्रों में तीन क्रियायें कही गई हैंप्रथम सूत्र में 'करेइ' क्रिया का कथन है / द्वितीय सूत्र में 'धरेइ' क्रिया का कथन है / तृतीय सूत्र में 'पिणद्वेइ' क्रिया का कथन है / यहाँ करेइ का अर्थ करना है अर्थात् बनाना है, धरेइ का अर्थ धारण करना है अर्थात् अपने पास रखना है / पिणःइ का अर्थ पहनना है अर्थात् स्वयं पहनता है इत्यादि / इस प्रकार तीनों क्रियाओं के भिन्न-भिन्न अर्थ हैं / इसी प्रकार आगे के सूत्रों में इन तीन क्रियानों का प्रयोग है, उनमें भी सर्वत्र उक्त अर्थ ही....... होता है। धातुओं के निर्माण प्रादि का प्रायश्चित्त 4. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए 1. अयलोहाणि वा, 2. तंबलोहाणि वा, 3. तउयलोहाणि वा, 4. सीसलोहाणि वा, 5. रुप्पलोहाणि वा, 6. सुवण्णलोहाणि वा करेइ, करेंतं वा साइज्जइ / 5. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अयलोहाणि वा जाव सुवण्णलोहाणि वा धरेइ, धरतं वा साइज्जइ। 6. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अयलोहाणि वा जाव सुवण्णलोहाणि वा पिणद्धेइ, पिणतं वा साइज्जइ। 4. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से... 1. लोहे का कड़ा, 2. तांबे का कड़ा, 6. त्रपुष का कड़ा, 4. शीशे का कड़ा, 5. चांदी का कड़ा, 6, सोने का कड़ा बनाता है या बनाने वाले का अनुमोदन करता है। 5. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से लोहे का कड़ा यावत् सोने का कड़ा धारण करता है या धारण करने वाले का अनुमोदन करता है / 6. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से लोहे का कड़ा यावत् सोने का कड़ा पहनता है या पहनने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है।) विवेचन-धमंत फुमंतस्स संजम-छक्कायविराहणा। राउले मूइज्जइ तत्थ बंधणादिया य दोसा / "जम्हा एते दोसा तम्हा णो करेति, णो धरेति, णो पिणद्धेति" ॥-चूणि // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org