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________________ 134] [निशीथसूत्र 27 जो भिक्ष काष्ठ, बांरा या वेंत के रंगीन दंड बनाता है या बनाने वाले का अनुमोदन करता है। 28. जो भिक्षु काष्ठ, बांस या वेंत के रंगीन दंड धारण करता है या धारण करने वाले का अनुमोदन करता है। 29. जो भिक्षु काष्ठ, बांस या वेंत के अनेक रंग वाले दंड बनाता है या बनाने वाले का अनुमोदन करता है। 30. जो भिक्षु काष्ठ, बांस या वेंत के अनेक रंग वाले दंड धारण करता है या धारण करने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।) विवेचन--"दंड" औपग्रहिक उपधि है / अर्थात् विशेष शारीरिक दुर्बलता आदि कारणों से ही कोई रख सकता है किन्तु सभी साधुओं को साधारणतया रखना नहीं कल्पता है। अतः आवश्यक होने पर बना बनाया दंड मिले तो धारण किया जा सकता है / न मिले तो भिक्षु अचित्त काष्ठ आदि से स्वयं बना सकता है / दंड बनाने में व धारण करने में निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है 1- जीव-जन्तु युक्त लकड़ी नहीं होनी चाहिये अर्थात् काष्ठ प्रादि सर्वथा जीवरहित होना चाहिये। 2- लकड़ी आदि के स्वाभाविक रंग के सिवाय अन्य कोई रंग नहीं होना चाहिए / 3- अन्य अनेक अाकर्षक रंग, कारीगरी या चित्र आदि मे विचित्र नहीं होना चाहिए / पारिभाषिक शब्द "सचित्ता-जीवसहिता" "चित्रक: --एक वर्णः, विचित्रा- नाना वर्णा": / चूणि दंड की सुरक्षा के लिए किसी प्रकार का लेप लगाना निषिद्ध नहीं है / विभूषा के लिए एक या अनेक वर्ण का बनाना अथवा कारीगीरी युक्त बनाना और धारण करना नहीं कल्पता है / सचित्त लकड़ी का दंड बनाने या रखने में जीव-विराधना स्पष्ट है। ये तीनों प्रकार के दंड करने का धारण करने का लघुमासिक प्रायश्चित्त पाता है / "परिभुजई" क्रिया युक्त तीन सूत्रों की व्याख्या नहीं मिलती है और न उनका निर्देश ही है। क्योंकि प्रौपग्रहिक उपधि आवश्यकता पड़ने पर ही धारण की जाती है / अतः इन तीन सूत्रों की आवश्यकता भी नहीं है / भाष्य व चूर्णिकार के समय की प्रतियों के मूल पाठ में ये सूत्र नहीं थे, बाद में बढ़ाये गये हैं / अतः उन तीन सूत्रों को यहां मूल पाठ में न लेकर केवल 6 सूत्रों को स्वीकार करके उनकी व्याख्या की गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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