________________ 122] [निशीषसूत्र प्रश्न-वह क्या तपस्या करता है ? उत्तर--कम से कम एकांतर उपवास करता है और पारणे के दिन प्रायंबिल करता है / प्रश्न-इस सूत्र में तो गोचरी साथ जाने का प्रायश्चित्त कहा है तथा और भी उसके साथ अन्य अनेक प्रकार के व्यवहार करने पर प्रायश्चित्त पाता है ? उत्तर-उसके साथ आठ कार्य करने पर लघुमासिक प्रायश्चित्त पाता है, जिसमें आठवां साथ में गोचरी जाने का है / अत: पूर्व के सात कार्य भी उसके साथ अंतर्भावित हैं, ऐसा समझ लेना चाहिये / इनके अतिरिक्त दो कार्य और हैं जिनके करने पर गुरुमासिक प्रायश्चित्त पाता है / प्रश्न-वे दस कार्य कौन से हैं ? उत्तर-१. आपस में वार्तालाप करना। 2. सूत्रार्थ पूछना। 3. स्वाध्याय आदि कंठस्थ ज्ञान सुनना 4. साथ में उठना बैठना आदि। और सुनाना / 5. वंदन-व्यवहार। 6. पात्र आदि उपकरण देना लेना। 7. प्रतिलेखन आदि कार्य करना / 8. दोनों का संघाडा बना कर ___ गोचरी आदि जाना। 9. आहार देना लेना। 10. एक मण्डली में बैठकर आहार करना अर्थात् साथ में खाना / प्रश्न-कुछ भी कहना हो, पूछना हो, पालोचना करना हो तो वह (पारिहारिक ) साधु किसके पास करे? उत्तर-उसे कुछ भी काम करना हो तो प्राचार्य की आज्ञा लेकर करे, उनके पास आलोचना करे, उनसे ही प्रश्न पूछे और उन्हें हो आहार बतावे, कष्ट आने पर या रोग आदि होने पर भी प्राचार्य से ही कहे / दूसरे साधु का उसके पास जाना, कहना या पूछना आदि नहीं हो सकता। प्रश्न- यदि कोई उसे रुग्ण अवस्था में देखे तो किसे सूचना दे ? उत्तर-उपाश्रय में किसी समय उसे असह्य तकलीफ हो तो वह स्वयं प्राचार्य से कहे / यदि वह असह्य वेदना के कारण आचार्य को न कह सके तो अन्य साधु जाकर उसकी वेदना के संबंध में आचार्य को जानकारी दे, बाद में उसकी सेवा के लिये प्राचार्य जिसे नियुक्त करें वह उसकी सेवा करे / प्रश्न-गोचरी आदि के लिये गया हुया वह भिक्षु मार्ग में कहीं गिर जाये तो उसकी सेवा के लिए प्राचार्य की आज्ञा लेना आवश्यक है ? उत्तर-नहीं, ऐसी परिस्थिति में कोई भी साधु उसकी सेवा कर सकता है। स्थान पर ले आने के बाद आचार्य को जानकारी देना और आलोचना करना आदि कार्य किये जाते हैं और स्वस्थ न हो तब तक उसको सेवा भी की जाती है। जितना कार्य वह स्वयं कर सकता हो उतना वह स्वयं करे / और जो कार्य वह न कर सके वह प्रत्य साधु प्राचार्य की आज्ञानुसार करे / प्रश्न-उसके साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया जाता है, यदि कोई उसकी सेवा सदा करे तो क्या दोष है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org