________________ चतुर्थ उद्देशक] [113 59. जे भिक्खू "सेढिय संसठेण" हत्थेण वा "जाव" पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ / 60. जे भिक्खू "सोरठ्ठियपिट्ठसंसठेण" हत्येण वा "जाव" पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ। 61. जे भिक्खू "कुक्कुस-संसट्टेण" हत्थेण वा "जाव" पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ। 62. जे भिक्खू "उक्कुट्ठ-संसट्टेण" हत्थेण वा "जाव" पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ / 63. जे भिक्खू “असंसट्टेण" हत्थेण वा “जाव" पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेत वा साइज्जइ / 49. जो भिक्षु पानी से गीले हाथ से मिट्टी के बर्तन (सरावला प्याला आदि) से, कुड़छी से या किसी धातु के बर्तन से दिया जाने वाला अशन, पान, खाद्य या स्वाध ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है / 50. जो भिक्षु सचित्त मिट्टी से लिप्त, हाथ से यावत् ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। 51. जो भिक्षु उस-पृथ्वी-खार से लिप्त हाथ से यावत् ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। 52. जो भिक्षु हड़ताल-चूर्ण से लिप्त हाथ से यावत् ग्रहण करता है या नहण करने वाले का अनुमोदन करता है। 53. जो भिक्षु हिंगुल-चूर्ण से लिप्त हाथ से यावत् ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। 54. जो भिक्षु मैनशिल-चूर्ण से लिप्त हाथ से यावत् ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। 55. जो भिक्षु अंजन-सुरमा से लिप्त हाथ से यावत् ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। 56. जो भिक्षु नमक-चूर्ण से लिप्त हाथ से यावत् ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। __57. जो भिक्षु.गेरु-गैरिका-चूर्ण से लिप्त हाथ से यावत् ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। 58. जो भिक्षु वणिक-पीली-मिट्टी के चूर्ण से लिप्त हाथ से यावत् ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। 59. जो भिक्षु खडिया (खड्डी)चूर्ण से लिप्त हाथ से यावत् ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org